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अयथार्थ-अरघा अयथार्थता; अनौचित्य अयोग्यता ।
पु० विष्णु; शिव । -जा,-संभवा-स्त्री० सीता । अयथार्थ-वि० [सं०] झूठ, गलत ।-नाम-पु० (मिस- अयोमय-वि० [सं०] लोहेका बना हुआ। नोमर) दे० 'मिथ्यानाम'।
| अयोमल-पु० [सं०] जंग, मोरचा। अयन-पु० [सं०] गति, चलना; सूर्यकी विषुवत् रेखासे अयोमार्ग-पु० (रेलवे) लोहेकी पटरियोंको सिलसिलेसे उत्तर या दक्षिणको गतिः इस गतिका काल; राशिचक्रकी जोड़कर बनाया हुआ मार्ग जिसपर यात्रियों या सामानको गति; मार्ग, रास्ता; गृह; आश्रय (नारायण); थनका वह | ढोनेवाली रेलगाड़ी दौड़ती है, रेल-पथ । भाग जिसमें दूध रहता है। -काल-पु० सूर्यके उत्तरायण अयोमुख-वि० [सं०] जिसके मुंह या सिरेपर लोहा या दक्षिणायन रहनेका काल ।
__ लगा हो। अयश (स)-पु० [सं०] अपयश, बदनामी लांछन। अयोहृदय-वि० [सं० जिसका हृदय लोहेकी तरह अयशस्कर, अयशस्य-वि० [सं०] बदनामी करनेवाला; कठिन हो, निष्ठुर । अयशका हेतु ।
अयोक्तिक-वि० [सं०] युक्तिविरूद्ध, असंगत । अयशी-वि० यशोहीन, बदनाम ।
अरंड-पु० दे० 'एरंड'। अयश्चूर्ण-पु० [सं०] लोहेका चूर ।
अरंभ*-पु० दे० 'आरंभ' अयस-पु० [सं०] लोहा; फौलाद धातु; हथियार, सोना; अरंभना*-अ० क्रि० बोलना; आरंभ होना। स० क्रि० अगुरु नामक वृक्ष । -कांत,-कांतमणि-पु० चुंबक! आरंभ करना। -कार-पु० लोहार । -कीट-पु० मोरचा, जंग। अर-पु० [सं०] पहियेकी नाभि और नेमिक बीचकी लकड़ी, अयाचक-वि० [सं० न माँगनेवालाः कामनारहितः संतष्ट। आरा कोण; सिवार; चक्रवाक पक्षी; पित्तपापड़ा। वि० अयाचित-वि० [सं०] न माँगा हुआ, अप्रार्थित।
तेज; थोड़ा। * स्त्री० दे० 'अड़' । -घट्ट,-घट्टक-पु० अयाची (चिन्)-वि० [सं०] दे० 'अयाचक' ।
रहट; कूप । अयान-वि० [सं०] बिना सवारीका, पैदल; * अजान । अरइल*-वि० दे० 'अड़ियल' । अयानता-स्त्री० अजानपन, अज्ञान ।
अरई-स्त्री० पैनेकी नोकपर लगी हुई कील जिससे तेज अयानप, अयानपन--पु० अनजानपन; भोलापन । चलानेके लिए बैलको कोंचते है। अयाल-पु० [फा०] धोड़े या सिंहकी गर्दनपरके बाल । अरक*-पु० सूर्यः अकवन; दे० 'अर्क' । अयि-अ० [सं०] (संबोधन) हे, ए, अरी।
अरकना*-अ० कि.० टकराना, भिड़ना; दरकना ।अयुक्त-वि० [सं०] न जोता हुआ; न जोड़ा हुआ;बे-लगाव बरकना-अ० क्रि० पकड़में न आनेके लिए हटना, बचना। अधार्मिक; अयोग्य; असंबद्ध; अनुपयुक्त, बे-ठीक; अन्य- अरकला*-पु० रोक, मर्यादा; अर्गल । मनस्क; अनभ्यस्त ।
अरकाटी-पु० गिरमिटिया कुलियोंकी भरती करनेवाला । अयुक्ति-स्त्री० [सं०] संबंध या लगावका अभावः पार्थक्यः | अरकान-पु० [अ० ] प्रधान कार्यकर्ता या कर्मचारी; वे युक्ति, तर्कका अभाव; अनौचित्य ।
लोग जिनपर किसी कार्य या प्रबंधका दारमदार हो * अयुग, अयुगल-वि० [सं०] अलग; अकेला; विषम । प्रमुख राजकर्मचारी। अयुग्म-वि० [सं०] जो जोड़ा न हो, अकेला । -नयन,- अरक्षित-वि० [सं०] जिसकी. रक्षा न की गयी या की नेत्र-पु० (तीन आँखोंवाले ) शिव । -बाण,-शर-पु० जाती हो; बिना बचावका । कामदेव ( पंचशर)।
अरग-पु० दे० 'अरगजा'। अयुत-पु० [सं०] १० हजारकी संख्या । वि० असंबद्ध, | अरगजा-पु० एक सुगंधित लेप जो चंदन, केसर आदि पृथक् ।
मिलाकर तैयार किया जाता है। अबुद्धग्रस्तता, अयुद्धलिप्ति-स्त्री० (नान-बेलिजरेन्सी) अरगजी-वि० अरगजा जैसे रंग या सुगंधवाला । पु० अरकिसी राष्ट्रका, कहनेके लिए युद्धसे पृथक् रहते हुए भी, गजेके रंगसे मिलता हुआ पीला रंग । खुल्लमखुल्ला युद्धलिप्त राष्ट्रकी सहायता करते रहना। । अरगट-*वि० अलग, भिन्न । अयुध-पु० [सं०] वह जो न लड़े; * दे० 'आयुध । अरगनी-स्त्री० कपड़ा टाँगनेके लिए बंधी हुई रस्सी, अयोग-पु० [सं०] बिलगाव; अयुक्तता; अप्राप्ति; अनौ- | बाँस आदि । 'चित्य संकट; दुष्ट ग्रहादिका योग; कुयोग ।
अरगल-पु० किवाड़को भीतरसे बंद करनेके लिए लगायी अयोगी*-वि० अयोग्य ।।
जानेवाली आड़ी लकड़ी, ब्योड़ा। अयोग्य-वि० [सं०] योग्यताहीन, नाकाबिल; निकम्माः अरगाना-अ० क्रि० अलग होना; चुप्पी साधना-सूने अनधिकारी नामुनासिब ।।
सदन मथनियाके ढिग बैठि रहे अरगाई'-सू०। स० अयोधन-पु० [सं०] हथौड़ा।
क्रि० अलग करना। अयोद्धा (द्ध)-पु० [सं०] वह जो योद्धा नहीं है | अरघ-पु० दे० 'अर्घ'। निम्न-श्रेणीका योद्धा।
अरघट्ट-पु० [सं०] दे० 'अर' के साथ । अयोध्य-वि० [सं०] जिससे युद्ध न किया जा सके; अजेय। अरघा-पु० अर्ध-पात्र; अर्ध-पात्रके आकारका बना पत्थरका अयोनि-वि० [सं०] अजन्मा; नित्यकोखसे उत्पन्न नहीं। आधार जिसमें शिवलिंगकी स्थापना की जाती है, जलहरी; पु० ब्रह्मा, शिव । -ज-वि० जो जरायुसे उत्पन्न न हो। वह पात्र जिसमें अर्ध रखकर दिया जाय; कुएँकी जगतपर
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