________________
२६६६
भगवती सूत्र-श. १८ उ. २ कार्तिक श्रेष्ठी (सेठ)-शवेन्द्र का पूर्वभव
पुवभवपुच्छा, जाव अभिसमण्णागया ?
२ उत्तर-'गोयमा' दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-'एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुदीवे दीवे भारहे वासे हथिणापुरे णामं णयरे होत्था । वण्णओ। सहस्संबवणे उजाणे । वण्णओ । तत्थ णं हथिणापुरे णयरे कत्तिए णामं सेट्टी परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए, णेगमपढमा. सहिए, णेगमट्ठसहस्सस्स बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कोडंवेसु यएवं जहा रायप्पसेणइज्जे चित्ते जाव चक्खुभूए, णेगमट्ठसहस्सस्स सयस्स य कुटुंबस्स आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे, समणोवासए, अभिगयजीवाजीवे जाव विहग्इ ।।
___ कठिन शब्दार्थ--णेगमपढमासणिए--व्यापारियों में प्रथम स्थान रखने वाला, कज्जेसु-घर सम्बन्धी कार्यों में, कारणेसु-कृषि, पशुपालन, वाणिज्यादि कारणों में ।
भावाथ-२ प्रश्न-'हे भगवन् !'-गौतम स्वामी ने श्रमण भगवन् महावीर स्वामी से पूछा-जिस प्रकार तीसरे शतक के प्रथम उद्देशक में ईशानेन्द्र के वर्णन में कूटागार शाला का दृष्टान्त और पूर्व-भव सम्बन्धी प्रश्न किया है, उसी प्रकार यहां भी यावत् 'ऋद्धि सम्मुख हुई है'-तक कहना चाहिये।
२ उत्तर-हे गौतम !'-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को सम्बोधन कर कहा-'हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नामक नगर था। वहां सहस्राम्र वन उदयान था, उस हस्तिनापुर नगर में 'कातिक' नामक श्रेष्ठी (सेठ) रहता था, जो धनिक यावत् किसी से पराभव न पाने वाला, वणिकों में अग्र-स्थान प्राप्त करने वाला था। वह उन एक हजार आठ व्यापारियों के लिये बहुत कार्यों में, कारणों में और कुटुम्बों में पूछने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org