Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रबोधिनी टीका पद १७ सू० ६ मनुष्यसमानाहारादिनिरूपणम्
किरिया, तत्थणं जेते मिच्छद्दिट्ठी जे सम्मामिच्छद्दिट्ठी तेसिं नियइयाओ पंचकरियओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चखाकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया, सेसं जहा नेरइया णं' ॥सू०६॥
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छाया - मनुष्याः खलु भदन्त ! सर्वे समाहाराः गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन एवमुच्यते - मनुष्याः नो सर्वे समाहाराः ? गौतम ! मनुष्याः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - महाशरीराव, अल्पशरीराच, तत्र खलु ये ते महाशरीरास्ते खलु बहुतरान् पुद्गलान् निःश्वसन्ति, आहत्य आहारयन्ति, आहत्य निःश्वसन्ति, तत्र खलु ये ते अल्पशरीरास्ते खलु अल्पतरान् पुद्गलान् आहारयन्ति, यावद् अल्पतरान पुगलान् निःश्वसन्ति, अभीक्ष्णम् आहारयन्ति यावद् मनुष्य के समानाहारादि की वक्तव्यता
शब्दार्थ - (मगुस्सा णं अंते ! सव्वे समाहारा ?) हे भगवन् ! मनुष्य सभीसमान आहारवाले हैं ? (गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (सेकेट्टे एवं बुच्चइ) किस कारण से ऐसा कहा जाता है ( मणुस्सा णो सव्वे समाहारा ?) मनुष्य सब समान आहारवाले नहीं हैं ? (गोयमा ! मस्सा दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (महासरीरा य अप्पसरीरा य) महान् शरीरवाले और अल्प अर्थात् छोटे शरीर वाले (तस्थ णं जे ते महासरीरा) उनमें जो महाशरीर वाले हैं (ते णं बहुतराए पोग्गले) वे बहुतर पुगलों का (आहारे ति) आहार करते हैं (जाव बहुतराए पोरगले नीससंति) यावत् बहुतर पुद्गलों का निःश्वास लेते हैं (आहच्च) कदाचित् (आहारेंति) आहार करते हैं (जाव) यावत् (आहच्च नीससंति) कदाचित् निःश्वास लेते हैं (तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा) उनमें जो अल्पशरीर वाले हैं (ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेति) वे अल्पतर पुद्गलों का
મનુષ્યના સમાનાહારાદિની વક્તવ્યતા
शब्दार्थ (माणं भंते ! सव्वे समाहारा १) हे भगवन् ! भनुष्य अधा समान माहार वाणा छे ? (गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे ) हे गौतम! आ अर्थ समर्थ नथी ( से केणट्टेणं एवं बुच्चइ) शा अगे मेषु उपाय छे (मनुस्सा णो सव्वे समाहारा ?) अधा भनुष्य समान आहारवाणा नथी ? ( गोयमा ! मणुस्ता दुबिहा पण्णत्ता) हे गौतम! भनुष्य मे अारना उद्या छे (तं जहा) तेथे मा प्रकारे (महा सरीराय अप्पसरीराय ) भडान् शरीरवाजा भने नाना शरीरवाणा छे (तत्थ णं जे ते महासरीरा) तेयामां ने महाशरीरवाजा छे. (तेणं बहुतराए पोम्गले ) ते या मधा पुगोन (आहा रे ति) आहार रे छे ( जाव बहुतराए पोग्गले नीससंति) यात्रत् घथा पुगसेो नो निःश्वास से छे (आहच्च) हाथित् ( आहारे ति) आहार ४२ छे. (जाव) यावत् ( आहच्च नीससंति) उद्यायित निःश्वास से छे (तथ णं जे ते
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४