________________
आदिपुराणम् शाक्तिकाः सह याष्टीकैः प्रासिका धन्वभिः समम् । नैस्त्रिंशिकाच तेऽन्योन्यं स्पर्धयेव ययुद्धतम् ॥१११॥ पुरः प्रधावितैः प्रेसद्वारवागा अपल्लवाः। जातपक्षा इवोडीय भटा जग्मुरतिद्रुतम् ॥११२॥ प्रयात धावतापत मार्ग मा रुध्वमग्रतः। इत्युच्चैरुच्चरद्ध्वानाः पौरस्त्यानत्ययुर्भटाः ॥११३॥ इतोऽपसर्पताश्चीयादितो धावत हास्तिकात् । इतो रथादपत्रता दूरं नश्यत नश्यत ॥११४॥ अमुष्माज्जनसंघहादुत्थापयत डित्यकान् । इतोहस्त्युरसादश्वानपसारयत द्रुतम् ॥११५॥ इतः प्रस्थानमारुध्य स्थितोऽयं घाटको गजः। मध्येऽध्वं "प्राजितुषात् पर्यस्तोऽयमितो रथः ॥११६॥ "क्रमेलकोऽयमुत्त्रस्तः प्रतीपं पथि धावति । उत्सृष्टभारो लम्बोष्टी जनानिव विडम्बयन् ॥११७॥ वित्रस्ताद्वेसरादेनां पतन्तोमवरोधिकाम् । संधारयन् पातेऽस्मिन् सौविदल्लः पतत्ययम् ॥११८॥ यवीयानेष पण्यस्त्रीमुखालोकनविस्मितः । पातितोऽप्यश्वसंवटै त्मानं वेद' शून्यधीः ॥११९॥
हरिद्वारञ्जितश्मश्रुः कज्जलाङ्कितलोचनः । कुटिनीमनुयन्नेष४ २"प्रवयास्तरुणायते ॥१२०॥
इति प्रयाणसंजल्पैरज्ञाताश्वपरिश्रमाः । सैनिकाः शिविरं प्रापन् सेनान्याः प्रानिवेशितम् ॥१२१॥ सैनिक जूता पहने हुए पैरोंसे ढूँठ काँटे तथा पत्थर आदिको लाँघते हुए घोड़े और रथोंसे भी जल्दी जा रहे थे ॥११०॥ शक्ति नामके हथियारको धारण करनेवाले लट्ठ धारण करनेवालोंके साथ, भाला धारण करनेवाले धनुष धारण करनेवालोंके साथ और तलवार धारण करनेवाले लोग परस्पर एक-दूसरेके साथ स्पर्धा करते हुए ही मानो बड़ी शीघ्रताके साथ जा रहे थे ॥१११॥ आगे-आगे दौड़नेसे जिनके कवचके अग्रभाग कुछ-कुछ हिल रहे हैं ऐसे योद्धा लोग इतनी जल्दी जा रहे थे मानो पंख उत्पन्न होनेसे वे उड़े हो जा रहे हों ॥११२॥ चलो, दौड़ो, हटो, आगेका मार्ग मत रोको इस प्रकार जोर-जोरसे बोलनेवाले योद्धा लोग अपने सामनेके लोगोंको हटा रहे थे ॥११३।। अरे, इन घोड़ोंके समूहसे एक ओर हटो, इन हाथियोंके समूहसे भागो, और बिचले हुए इन रथोंसे भी दूर भाग जाओ ।।११४॥ अरे, इन बच्चोंको लोगोंकी इस भीड़से उठाओ और इन हाथियोंके आगेसे घोड़ोंको भी शीघ्र हटाओ ॥११५।। इधर यह दुष्ट हाथी रास्ता रोककर खड़ा हुआ है और इधर यह रथ सारथिको गलतीसे मार्गके बीचमें ही उलट गया है ॥११६॥ इधर देखो, जिसने अपना भार पटक दिया है, जिसके लम्बे होंठ हैं और जो बहुत घबड़ा गया है ऐसा यह ऊँट मार्गमें इस प्रकार उलटा दौड़ा जा रहा है मानो लोगोंकी विडम्बना ही करना चाहता हो ॥११७॥ इधर इस ऊँची जमीनपर घबड़ाये हुए खच्चरपर-से गिरतो हुई अन्तःपुरकी स्त्रीको कोई कंचुकी बीचमें ही धारण कर रहा है परन्तु ऐसा करता हुआ वह स्वयं गिर रहा है ॥११८॥ यह तरुण पुरुष वेश्याका मुख देखनेसे आश्चर्यचकित होता हुआ घोड़ेके धक्केसे गिर गया है, परन्तु वह मूर्ख 'मैं' गिर गया हूँ इस तरह अब भी अपने-आपको नहीं जान रहा है ॥११९।। जिसने अपने बाल खिजाबसे काले कर लिये हैं, जिसकी आँखोंमें काजल लगा हुआ है और जो किसी कुट्टिनीके पीछे-पीछे जा रहा है ऐसा यह बूढ़ा ठीक तरुण पुरुषके समान आचरण कर रहा है ॥१२०॥ इस प्रकार चलते समयकी बात
१ शवितः प्रहरणं येषां ते शाक्तिकाः । २ यष्टिहेतिकैः । ३ कौन्तिकाः । ४ असिहेतिकाः । ५ प्रधावनैः । ६ चलत्कञ्चुक । ७ पुरोगामिनः । ८ भो विगतभयाः । ९ बालकान् । डिम्भकान् ल०, द०, इ०, अ०, प०, स०। १० हस्तिमुख्पात् । ११ गमनम् । पन्थान-ले० । १२ मार्गमध्ये । १३ सारथेः । 'नियन्ता प्राजिता यन्ता सूतः क्षत्ता च सारथिः ।' इत्यभिधानात् । १४ उत्तानितः । १५ उष्ट्रः । १६ भीति गतः । १७ प्रतिकूलम् । अभिमुखमित्यर्थः । १८ प्रपातस्तु तटोभृगुः । १९ कञ्चुकी । २० युवा । २१ जानाति । २२ पलितप्रतीकारार्थ प्रयुक्तौषधविशेषरजित । २३ शफरोम् । 'कट्रिनी शफरी समे' इत्यभिधानात् । २४ अनुगच्छन् । २५ वृद्धाः । 'प्रवाः स्थविरो वृद्धो जोनो जीर्णो जरत्नपि' इत्यभिधानात् ।