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आदिपुराणम् गते मासपृथक्त्वे' च जन्माद्यस्य यथाक्रमम् । अन्नप्राशनमाम्नातं पूजाविधिपुरःसरम् ॥१५॥
इति अन्नप्राशनम् । ततोऽस्य हायने पूर्ण व्युष्टि म क्रिया मता । वर्षवर्धनपर्यायशब्दवाच्या यथाश्रतम् ॥१६॥ अत्रापि पूर्ववहानं जैनी पूजा च पूर्ववत् । इष्टबन्धसमाह्वानं समाशादिश्च लक्ष्यताम् ॥१७॥
इति व्युष्टिः। केशवापस्तु केशानां शुभेऽह्नि व्यपरोपणम् । क्षौरेण कर्मणा देवगुरुपूजापुरःसरम् ॥९॥ गन्धोदकादिवान् कृत्वा केशान् शेषाक्षतोचितान् । मौण्ड्यमस्य विधेयं स्यात् सचूलं स्वाऽन्वयोचितम् स्नपनोदकधौताङ्गमनुलिप्तं सभूषणम् । प्रणमय्य' मुनीन् पश्चाद् योजयेद् बन्धुनाशिषा ॥१०॥ चौलाख्यया प्रतीतेयं कृतपुण्याहमङ्गला । क्रियास्यामाहतो लोको यतते परया मुदा ॥१०१॥
इति केशवापः । ततोऽस्य पञ्चमे वर्षे प्रथमाक्षरदर्शने । ज्ञेयः क्रियाविधिर्नाम्ना लिपिसंख्यानसंग्रहः ॥१०॥ यथाविभवमन्त्रापि ज्ञयः पूजापरिच्छदः । उपाध्यायपदे चास्य मतोऽधीती" गृहव्रती ॥१०॥
इति लिपिसंख्यानसंग्रहः । क्रियोपनीति मास्य वर्षे गर्भाष्टमे मता । यत्रापनीतकेशस्य मौजी सव्रतबन्धना ॥१०॥
जब क्रम-क्रमसे सात-आठ माह व्यतीत हो जायें तब अर्हन्त भगवान्की पूजा आदि कर बालकको अन्न खिलाना चाहिए ॥९५।। यह दसवीं अन्नप्राशन क्रिया है।
तदनन्तर एक वर्ष पूर्ण होनेपर व्युष्टि नामकी क्रिया की जाती है इस क्रियाका दूसरा नाम शास्त्रानुसार वर्षवर्धन है ॥९६॥ इस क्रियामें भी पहले ही के समान दान देना चाहिए, जिनेन्द्र भगवान्की पूजा करनी चाहिए, इष्टबन्धुओंको बुलाना चाहिए और सबको भोजन कराना चाहिए ॥९७॥ यह ग्यारहवीं व्युष्टि क्रिया है ।
तदनन्तर, किसी शुभ दिन देव और गुरुको पूजाके साथ-साथ क्षौरकर्म अर्थात् उस्तरासे बालकके बाल बनवाना केशवाप क्रिया कहलाती है ।।९८॥ प्रथम ही बालोंको गन्धोदकसे गीला कर उनपर पूजाके बचे हुए शेष अक्षत रखे और फिर चोटी सहित अथवा अपनी कुलपद्धतिके अनुसार उसका मुण्डन करना चाहिए ॥९९।। फिर स्नान करानेके लिए लाये हुए जलसे जिसका समस्त शरीर साफ कर दिया गया है, जिसपर लेप लगाया गया है और जिसे उत्तम आभूषण पहनाये गये हैं ऐसे उस बालकसे मुनियोंको नमस्कार करावें, पश्चात् सब भाई, बन्धु उसे आशीर्वादसे युक्त करें ॥१०॥ इस क्रियामें पुण्याहमंगल किया जाता है
और यह चौल क्रिया नामसे प्रसिद्ध है इस क्रियामें आदरको प्राप्त हुए लोग बड़े हर्षसे प्रवृत्त होते हैं ॥१०१॥ यह केशवाप नामकी बारहवीं किया है।
तदनन्तर पाँचवें वर्ष में बालकको सर्वप्रथम अक्षरोंका दर्शन करानेके लिए लिपिसंख्यान नामकी क्रियाकी विधि की जाती है ॥१०२।। इस क्रियामें भी अपने वैभवके अनुसार पूजा आदिकी सामग्री जुटानी चाहिए और अध्ययन करानेमें कुशल व्रती गृहस्थको ही उस बालकके अध्यापकके पदपर नियुक्त करना चाहिए ॥१०३।। यह तेरहवीं लिपिसंख्यान क्रिया है।
___गर्भसे आठवें वर्षमें बालककी उपनीति ( यज्ञोपवीत धारण ) क्रिया होती है । इस क्रियामें केशोंका मुण्डन, व्रतबन्धन तथा मौजीबन्धनको क्रियाएं की १ सप्ताष्टमासे । २ जन्मदिनात् प्रारभ्य । ३ संवत्सरे। 'संवत्सरो वत्सरोऽब्दो हायनोऽस्त्री शरत समा' इत्यभिधानात् । ४ शास्त्रानुसारेण । ५ तत्रापि ल० । ६ सहभोजनादिः । ७ अपनयनम् । ८ चूडासहितम् । शिखासहितमित्यर्थः । ९ वान्वयोचितम् ल० । चान्वयोचितम् द० । १० अलंकारयुक्तशिशुम् । ११ मुनिभ्यो नमनं कारयित्वा । १२ बन्धुममूहकृताशीर्वचनेन । १३ अधीतवान् ।