Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 565
________________ शासनहर = दूत ३४।५० शिखण्डिन् = मयूर २६।१९ शिञ्जित = नपुरोंको झनकार २६।१५ शिवा = शृगाली ३४।१८२ शिरस्त्र = शिरका टोप ३६।१४ शीक्यमान = सींचे गये २८।१०९ शुचि = ग्रीष्म ऋतु २७४४९ शूद्र=एक वर्ण ३८।४६ शेमुषी = बुद्धि २८।१५८ श्रमधर्माम्बुविष = पसीनाकी बूंदें ३५।३५ श्रावकाचारचुञ्च = श्रावकाचारसे प्रसिद्ध ४०।३० श्रीगृह = खजाना ३७८५ श्रुतोपासक सूत्र = उपासकाध्य- यनाङ्गश्रावकाचारका वर्णन करनेवाला शास्त्र ३८२४ श्रौत= श्रुति अथवा वेद सम्बन्धी ३९.१० इलाध्य परिच्छद = प्रशंसनीय परिकरसे सहित ३४।१२४ श्वेतभानु = चन्द्र ४११७६ विशिष्ट शब्द-सूची संग्रामनिकष = युद्धरूपी कसौटी ३५।१३७ सजयकेतन = विजय पताकासे सहित ३६६ सजानि = स्त्रियोंसे सहित २९१०८ सत्योद्य = सत्यपदार्थका कथन - करनेवाला ३९।१२ सत्त्वोपघात = प्राणिघात४११५१ सदोऽवनि = समवसरण भूमि ४१।१९ सध्रीची = सखी २६।१४६ सनामि = बन्धु ४५।१२५ सनाभि = सगोत्र, कुटुम्बीजन ३४२० सनामित्व = सगा भाईपना ३५२ सन्नाह = कवच ३२१६९ सन्निधि = सामीप्य, सन्निधान, ३६।२०३ सन्निधि = एकत्र उपस्थिति ३५।४६ सप्तच्छद = सप्तपर्ण नामका एक वृक्ष, जो शरद् ऋतुमें फूलता है। इसको डण्ठलमें सात-सात पत्ते होते हैं। २६६ सभावनि = सभाभूमि ३६।२०० सभामण्डल =समवसरण ४७।१६३ . समरसंघट्टपिशुन = युद्धके सम्मदको सूचित करने. वाला ३५।१४१ समवाय = समह ३४।१३८ समवर्ती= यम ४६।१४३ सम्पतन्ती - उड़ती हुई २६१८ संप्रीत = प्रसन्न ३९।४४. संभूत = समुत्पन्न ३४।११२ समावर्ष ३३।२०२ समानता=मानसे सहितपना ३५।११७ समांसमीना = प्रतिवर्ष गभिणी होनेवाली गाय २६।१३६ समित्सहस्र = हजारों लकड़ियाँ ३५।११ समिद्ध = प्रचण्ड ४४।३४६ समुत्सित = गवित ४४०६२ समुद्वाह =विवाह २६।६५ सरोजरागरत्न = पद्मरागमणि ३३॥६० सर्जन = सृष्टि ४१।१२ सर्वकष =सर्वघाती ३९।२९ सर्वमोगीणा = सबके भोगने योग्य ३४।११९ सलिलालोडित = पानीमें घुला हुआ ३९।४३ सव्येष्ट = सारथि २८।५९ सहसान = मयूर २६।१८ सहसारसाः = सारस पक्षियोंसे सहित २६।१५ संख्यातरात्र = कुछ रातें ३५।२७ संख्याज्ञान = गणित शास्त्र ३८।१२० संघात =समूह ३६६ संदंशित = कवच पहने हुए . ३६।१५ संप्रेक्षा = आलोकन ३६।२२ संप्लुष्ट = दग्ध ३४।१५४ संयुग = युद्ध ४४०९९ संवर्मित = कवच धारण किये हुए ३६।१३८ संवाह = पहाड़ोंपर बसने वाले गांव ३७।६६ संविद् = ज्ञान ४६।२४५ संवेग = संसारसे भय ३४।१४६ संस्कृत = उत्तम मनुष्य ४३।४५ संहित = इकट्ठे हुए, मिले हुए ४२११ साकम्पनि = आकम्पनि - अक म्पनके पुत्रोंसे / सहित ४४।१०५. सागार = गृहस्थ, ३८७ षटकर्मजीविन् = असि, - मषी, कृषि, शिल्प, वाणिज्य, और विद्या इन छह कार्योंसे आजीविका करनेवाले ३९४१४३ षट्तयी=छह भेदसे युक्त ३८।४२ षडङ्ग = हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल सैनिक, देव, और विद्याधर ये चक्रवर्तीकी सेनाके ६ अंग कहलाते हैं । ३६५ षाङ्गण्य = सान्ध, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, आश्रय, ये राजाओंके छह गुण हैं। २८।२८ सगर - युद्ध ४३१५२ सङ्गर = प्रतिज्ञा ३४।१७०

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