Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 564
________________ ५४६ आदिपुराणम् विचक्षण = बुद्धिमान् ३४।१९७ विजाति पक्षियोंकी जाति, नीच जाति ३०७२ - वितृड् (वितृषु )= प्याससे रहित २७८ वित्रस्त = भयभीत २९।१६१ विदाम्बर = विद्वानोंपें श्रेष्ठ ३४।१४३ विद्याधर = विजयाई पर्वतके निवासी विद्याओंसे सुशो भित मनुष्य ४११२६ विद्रुम = मूंगा ३५।१६३ विधु= चन्द्रमा ३५।१७५ विधूय = कम्पित करके ३५।२३० विधेयता= आज्ञाकारिता, __ अधीनता ३५।७३ विनियोग = कार्य ४०1८६ विनिपात = वाधा ३६।१७९ विनियन्त्रण = निरंकुश ३६।२५ विनीलवसना = नीले वस्त्र धारण करनेवाली ३५।१७० विपाश = बन्धनसे मुक्त ४२१७८ विप्रकृष्ट = दूरवर्ती पदार्थ ४२११६ विप्रतिपत्ति = सन्देह ४११४१ विभावरी = रात्रि ३५।२१२ विमलाम्बरा = निर्मल वस्त्रवाली, निर्मल आकाशवाली २६।५ विमानता = तिरस्कार ३४।२०४ विरूपक= विरुद्ध-कष्टकारी ३६।२७ विरूपा = अमूर्ता, कुरूपा ३५।२४१ विलक्षता=आश्चर्य ३६१६३ विलक्ष्यता = लज्जा, आश्चर्य ३३.५९ विवस्वत् = सूर्य ३५।१६२ विवृत्सु = जमीनपर लोटनेका इच्छुक २९।११२ विशरारु = नश्वर ४६।१७७ विशङ्कट = विशाल ३१।१४ विशाप = जिसका शाप नष्ट हो व्याघ्र धेनुका = नवप्रसूता व्याघ्री चुका है ३५।२३३ ३६।१६६ विशिखावलीबाण पङ्क्ति व्यात्तास्य = जिसने मुख खोल ४४।१२३ रखा है २८।१८० विश्वविन्मत = सर्वज्ञमत व्यातुक्षी = एक दूसरेपर पानी ४१।१४१ उछालना, फाग ३६।५३ विय = देश ४६।९४ व्यावहासी = परस्पर हास्यविष्वग = सब ओस्से ३५।९७ मजाक २६।३३ विष्टपातिग= लोकोत्तर ३३।१४९ शकृत् = विष्ठा ४६।२९१ विष्वाण = भोजन ३६।११२ शतमखेष्वास = इन्द्रधनुष २६२० विसिनी = कमलिनी ३५।२३०। शताध्वर = इन्द्र ३६।१९६ विस्रब्ध = निश्चिन्त, विश्वासको शब्दविद्या = व्याकरण शास्त्र प्राप्त ३६४१६४ ३८।११९ विहितायक = कृतपुण्य ४७।१०३ शम्बल-(सम्बल) = मार्गहितवीरागणी = वीरोंमें अग्रेसर कारी भोजन ३५।२२ श्रेष्ठ ३६।३४ शम्फली दुती ३४।१६ वीरुध = लता ३६०२०८ शरव्यता= लक्ष्यता २८९ वृत्तिभेद = आजीविका भेद शयुपोत = अजगरके बच्चे ३८।४५ २७१३४ वृष = बल ४१७७ शल्कसात्कृतात् = खण्ड-खण्ड वेपथु = कम्पन ३६।८६ किये ३४।६० वेशन्त = स्वल्प जलाशय ३३१५० शरतल्प = बाणोंकी शय्या वेसर = खच्चर २९।१६१ ३५।२११ बैलक्ष्य = आश्चर्य, लज्जा, झेंप शरवात =बाणोंका समूह ३६८० ३६१९२ शरव्य = निशाना ३५७१ वैवस्वतास्पद % यमपुर ४४८ शर्वरी = रात्रि ३४।१५५ वैशाखस्थान = बाण चलानेका शाक्तम् = शक्ति समूह (उत्साहएक आसन ३२८७ शक्ति, मन्त्रशक्ति, प्रभुत्वव्यञ्जन = तिल मसे आदि चिह्न शक्ति ) ३०७ ३७।२९ शाक्तिक=शक्तिनामक शस्त्रको व्यामूढि = मूढता - मूर्खता धारण करनेवाले २७।१११ ३५।२३५ शाखामृग = वानर ४११३७ व्युत्थित = विरुद्ध आचरणवाले शाखिन् = वृक्ष ३६६ ३४।४० शारीर = शरीर सम्बन्धी ३७।३० न्यूढोरस्क = चौड़ी छातीवाला । शारदी = शरद् ऋतु सम्बन्धी ३१११४६ ३७।१४० व्यपरोपण = घात करना ३८।१७ शार्वर = रात्रि सम्बन्धी ३५।२२२ ब्युत्सृष्ट % त्यक्त ३६४१२३ शालिगोपिका = धानके खेत व्रज = गोष्ठ - गायोंके रहनेका रखानेवाली गोपियाँ ३५॥३६ - स्थान ३७१६९ शालिवप्र = धानके खेत ३५।३१ व्रतवात = व्रतोंका समूह ३९।३६ शासन = शिक्षक ३५।८६

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