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आदिपुराणम्
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शकुनिः शकुनाद् दुष्टाद् ग्रहात्पापाद् बृहस्पतिः । धन्वन्तरिस्त्रिदोषेभ्यो जन्मनीति समादिशत् ॥ ११५ ॥ भूतार्थस्त्वस्तु तत्सर्वं कर्म हिंसाद्युपार्जितम् । प्रधानकारणं तेन हीनाङ्ग इति सूक्तवान् ॥ ११६॥ शक्तिषेण महीपालप्रतिपन्नतुजः पिता । सत्यदेवस्य दृष्ट्वाऽस्मिंस्त मन्विष्यन्य दृच्छया ॥ ११७ ॥ तदा कृत्वा महद्दुःखं 'सभ्यैराकर्ण्यतामिदम् । च्युतं पयोऽतिपाकेन भाजनात्तण्डुलानपि ॥११८॥ भक्ष्यमाणान् कपोताद्यैः पश्यँस्तूष्णीमयं स्थितः । क्रोधान्मातुः कनीयस्या भर्त्सनादागतोऽसहः ' अधस्ताद् वक्त्रविवरं घ्राणस्येति तदप्ययम् । क्षमते नेति सर्वेषां तदकर्मण्यतां ब्रुवन् ॥ १२०॥ गन्तुं सहात्मना "तस्यानभिलाषाद्" विषण्णवान् । परस्मिन्नपि भूयासं भवे ते स्नेहगोचरः ॥ कृत्वा निदानं द्रव्यसंयममाश्रितः । प्रपेदे लोकपालत्वं तद्गतस्नेहमोहितः ॥ १२२ ॥ 'कदाचिच्छुक्लपक्षस्य दिनादौ भार्यया सह । कृतोपवासया शक्तिषेणो भक्तिपुरस्सरम्" ॥१२३॥ मुनिभ्यां दत्तदानेन पञ्चाश्चर्यमवाप्तवान् । दृष्ट्वा तच्छ्रेष्टिधारिण्य वावयोरन्यजन्मनि ॥ १२४ ॥ २६ एतावपत्ये "भूयास्तां निदानं कुरुतामिति । मन्त्रिणस्तस्य चत्वारोऽप्यस्तसर्वपरिग्रहाः ॥ १२५॥ बैठा था कि इतने में वहाँ एक हीन अंगवाला पुरुष आया। उसे देखकर सेठने सव मन्त्रियोंसे कहा कि यह ऐसा किस कारणसे हुआ है ? ।। ११४ || इसके उत्तर में शकुनि मन्त्रीने कहा कि जन्म के समय बुरे शकुन होनेसे यह ऐसा हुआ है ? वृहस्पतिने कहा कि जन्म के समय दुष्ट ग्रहों के पड़ने से यह होनांग हुआ है और धन्वन्तरिने कहा कि जन्म के समय वात पित्त कफ इन तीन दोपोंके कारण यह विकलांग हो गया है । यह सुनकर भूतार्थ नामक मन्त्रीने कहा कि आप यह सब रहने दीजिए, इस जीवने पूर्वभव में हिंसा आदिके द्वारा जो कर्म उपार्जन किये थे वे ही इसके हीनांग होनेमें प्रधान कारण हैं ।। ११५ - ११६ ॥ इतनेमें ही शक्तिपेण सेनापतिने जिसे अपना पुत्र स्वीकार किया है ऐसे उस सत्यदेवका पिता अपनी इच्छानुसार उसे खोजता हुआ आ पहुँचा। उस हीनांग पुत्रको देखकर उसे बहुत ही दुःख हुआ और वह कहने लगा कि है सभासदो, सुनो, एक दिन घरमें चावल पक रहे थे सो पानीके उफान के कारण कुछ चावल बरतनसे नीचे गिर गये और उन नीचे गिरे हुए चावलोंको कबूतर आदि पक्षी चुगने लगे परन्तु यह सब देखता हुआ चुपचाप खड़ा रहा - इसने उन्हें भगाया नहीं । तब इसकी माँकी छोटी बहनने क्रोधसे इसे डाँटा, उस डाँटको न सह सकनेके कारण ही यह यहाँ चला आया है। यह इतना असहनशील है कि 'तेरी नाकके नीचे मुँहका छेद है' इस बातको भी नहीं सह सकता है । इस तरह सब सभासदों से उसके पिताने उसकी अकर्मण्यताका वर्णन किया। चूँकि सत्यदेव अपने पिता के साथ वापस नहीं जाना चाहता था इसलिए उसने दुःखी होकर निदान किया कि 'अगले भवमें भी मैं तेरे स्नेहका पात्र होऊ" इस प्रकार निदान कर वह द्रव्यलिंगी मुनि हो गया और सत्यदेवके प्रेमसे मोहित होकर मरा जिससे लोकपाल हुआ ।।११७- १२२ ।। किसी एक समय शुक्लपक्षकी प्रतिपदा के दिन शक्तिपेणने उपवास करनेवाली अपनी स्त्री अटवीश्री के साथ-साथ भक्ति पूर्वक मुनियोंको आहारदान देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये, उसे देखकर सेठ मेरुकदत्त और उनकी स्त्री धारिणीने निदान किया कि 'ये दोनों अगले जन्म में हमारी ही सन्तान हों । सेठ मेरुक१ कर्मकरणेन । २ विकलाङ्गो जात इति । ३ सुष्ठु प्रोक्तवान् । ४ शक्तिपेणनामसामन्तेनायं मम पुत्र इति स्वीकृतसूतस्य । ५ सत्यकनामजनकः । ६ सर्पसरोवरे । ७ गवेपयन्नित्यर्थः । ८ सभाजनैः । ९ सत्यदेवजनन्याः । १० भगिन्याः | ११ असहमान: । १२ सभाजनानाम् । १३ तत् सत्यदेवस्य कर्मण्यक्षमताम् । १४ सत्यकेन स्वेन । १५ सत्यदेवस्य । १६ अनभिमतात् । १७ भवेयम् । १८ स्नेहगोचरम् इ० अ०, स० । १९ सत्यकः । २० लोकपालनाय देवत्वम् । २१ पुरस्सरः ल० । २२ दानसंजाताश्चर्यम् । २३ मेरुदत्ततद्भार्याधारिण्यौ । २४ क्तिविक्रियो । २५ पुत्रौ । २६ अकुरुताम् । २७ मेरुकदत्तस्य ।
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