Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 472
________________ आदिपुराणम् 3 तदा मुनेर्गुहार भिक्षां त्यत्वा गमनकारणम् । अशाखा भूपतेः प्रश्नादाँ हामितमतिः श्रुतम् ॥९३॥ विषयेऽस्मिन् खगमात्यानं वनं महत् । अस्ति धान्यक्रमालास्वं तदभ्यर्णे पुरं परम् ॥ ९४ ॥ शोभानगरम स्पेशः प्रजापाल महीपतिः । देवश्रीस्तस्य देण्यासीत् सुखदा श्रीविापरा ॥ ३५॥ शक्तिपेणोऽस्य 'सामन्तस्तस्याभूत् प्रीतिदायिनी । अटवीश्रीस्तयो: "सत्यदेवः सूनुरिमे" समम् ॥ १६॥ सर्वेऽवासनभव्यत्वाद् अस्मत्या इसमाश्रयात् । या धर्म नृपेणामा समापन्मद्यमांसयोः ॥९७॥ त्यागं पर्वोपवासं च शक्ति पेगोऽपि भक्तिमान् । मुनिवेलात्यये भुक्तिम ग्रहीत् स गृहिव्रतम् ॥९८॥ "तत्पत्नी "शुक्लपचादिदिनेऽष्टम्यामथापरे । पक्षे पञ्चसमास्यागमाहारस्य समग्रहीत् ॥ ९९ ॥ अनुप्रवृद्धकल्याणनामधेयमुपोषितम् " सत्यदेवश्च साधूनां स्तवनं प्रत्यपद्यत ॥ १०० ॥ इत्यभूवन्नमी श्रद्धाविहीनत्रतभूषणाः । स मृणालवतीं नेतुं कदाचिदवश्रियम् ॥१०१॥ । 93 १५ " ૨૨ पित्रोः पुरी प्रवृत्तः सन् शक्तिषेणः ससैम्यकः । बने धान्यकमालाख्यं प्राप्य सर्पसरोवरम् ॥१०२॥ निविष्टानि चान्यत् प्रकृतं तत्र कथ्यते पतिर्मृगालवत्याख्यानगय धरणीपतिः ॥१०३॥ 1 ४५४ 1 - जानती हूँ, सुनिए ॥९१-९२ ।। उस समय वे मुनि आहार छोड़कर सेठ के घरसे चले गये थे । जब राजाको उनके इस तरह चले जानेका कारण मालूम नहीं हुआ तब इसने अमितमति गणिनी (आर्यिका ) से पूछा । अमितगतिने भी जैसा सुना था वैसा वह कहने लगी ||९३ ॥ इसी पुष्कलावती देशमें विजयार्थ पर्वतके निकट एक 'धान्यकमाल' नामका बड़ा भारी वन है और उस वनके पास ही शोभानगर नामकी एक बड़ा नगर है। उस नगरका स्वामी राजा प्रजापाल था और उसकी स्त्रीका नाम था देवश्री बहु देवश्री दूसरी लक्ष्मीके समान सुख देनेवाली थी ।। ९४-९५ ।। राजा प्रजापालके एक शक्तिषेण नामका सामन्त था, उसकी प्रीति उत्पन्न करनेवाली अटवीश्री नामकी स्त्री थी। उन दोनोंके सत्यदेव नामका पुत्र था । किसी समय निकटभव्य होनेके कारण इन सभीने मेरे चरणोंके आश्रयसे धर्मका उपदेश सुना। राजा भी इनके साथ था उपदेश सुनकर सभीने मद्य-मांसका त्याग किया और पर्वके दिन उपवास करनेका नियम लिया । भक्ति करनेवाले शक्तिषेणने भी गृहस्थ के व्रत धारण किये और साथमें यह नियम लिया कि मैं मुनियोंके भोजन करनेका समय टालकर भोजन करूँगा ।। ९६-९८ ।। शक्तिषेणकी स्त्री अटवीश्रीने पाँच वर्षतक शुक्ल पक्षका प्रथम दिन और कृष्णपक्ष की अष्टमीको आहार त्याग करनेका नियम किया अनुप्रवद्ध कल्याण नामका उपवास व्रत ग्रहण किया तथा सत्यदेवने भी साधुओंके स्तवन करनेका नियम लिया ||९९॥ १०० ॥ इस प्रकार ये सब सम्यग्दर्शनके बिना ही व्रतरूप आभूषणको धारण करनेवाले हो गये। किसी एक दिन सेनापति शक्तिषेण अपनी सेनाके साथ अटवीश्रीको लेनेके लिए उसके माता-पिताकी नगरी मृणालवतीको गया था। बहस लौटते समय वह धान्यकमाल नामके वनमें सपेंसरोवर के समीप ठहरा। उसी समय एक दूसरी घटना हुई जो इस प्रकार कही जाती है। , १ लोकपालस्य । २ वक्ति ३ अमितत्यायिका ४ स्वयं चारणमुनिनिकडे आकणितम् । ५ पुष्कलावत्याम् । ६ विजयार्द्धगिरिसमीपम् । ७ समीपे । ८ नगरस्य । ९ नायकः । १० सत्यदेवनामा स्वीकृतपुत्रः संजातः । ११ इमे सर्वे देवश्रीदेव्यादयः समं धर्मं श्रुत्वेति संबन्धः । १२ अमितगतिनामास्मत्वादसमाश्रयात् । १३ मुनिचर्याकाले अतिक्रान्ते सति। १४ आहारं स्वीकरोमीति व्रतम् १५ शक्तिषेणभार्या १६ शुक्लपक्षप्रति पद्दिने । अपरे पक्षे अष्टम्यां दिने च । १७ पञ्चवर्षाणि । १८ उपवासव्रतं समग्रहीत् । १९ परमेष्ठिनां स्तोत्रम् । २० गृहीतवान् २१ जननीजनकपोः। २२ मृणालवतीनामनगरीम् । २३ भूपतिः ।

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