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पारिभाषिक शब्द-सूची
है। ये बारह होती हैं - अन्तरङ्ग शत्रुओंका समूह अक्षीणमहानस-जैन मुनिकी एक १ अनित्य, २ अशरण, ३ है । ३८।२८०
ऋद्धि, जिसके प्रभावसे जहाँ संसार, ४ एकत्व, ५ अन्य- अलोक-लोकके बाहरका अनन्त इस ऋद्धिप्राप्त मुनिका त्व, ६ अशुचित्व, ७ आस्रव, आकाश ३३।१३२ भोजन होता है वहाँकी ८ संवर, ९ निर्जरा, १०
अश्व- चक्रवर्तीका एक सचेतन भोजन-सामग्री अक्षीण हो लोक, ११ बोधिदुर्लभ, और
रत्न ६७१८४ जाती है। अर्थात् वहाँ १२ धर्मस्वाख्यातत्व । ३६। असि- चक्रवर्तीका एक निर्जीव कितने ही लोग भोजन १५९-१६०
रत्न ३७८४ करते जायें, पर भोजन- अनुत्तरोपपादिकदशाङ्ग-द्वादशां
आ सामग्री कम नहीं होती। गका नौंवा भेद। जिसमें ३६।१५५
प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थ में
आकिंचन्य-परिग्रहका त्याग अक्षीणावसथ-जैन मुनिकी एक उपसर्ग सहन कर अनुत्तर
करना ३६।१५७ ऋद्धि, जहाँ इस ऋद्धिका विमानोंमें उत्पन्न होनेवाले
आचाराङ्ग- द्वादशाङ्गका पहला धारक मुनि निवास करता दश-दश पुरुषोंका वर्णन
अङ्ग, जिसमें मुनियों के है, वहाँ छोटे स्थानमें भी होता है । ३४।१४२
आचारका वर्णन है। ३४ बहुत बड़ा समूह भी अनूचान- अङ्गसहित वेदका
१३५ • स्थान प्राप्त कर सकता है। अध्ययन करनेवाला ३९।५३
आज्ञाविषय-धर्म्यध्यानका एक ३६.१५५ अनुप्रवृद्धकल्याण-एक उपोषित
भेद ३६।१६१ अग्रनिवृति- गर्भान्वय क्रियाका व्रतका नाम ४६।१००
आतपत्र- चक्रवर्तीका एक निर्जीव एक भेद । ३८१६२ अन्तकृद्दशाङ्ग- द्वादशाङ्गका
रत्न ३७१८४ अणिमादिगुण- अणिमा, महिमा आठवाँ भेद ३४।१४२
आतपयोग- ग्रीष्म ऋतुमें पर्वतगरिमा, लघिमा, प्राप्ति, अन्वयदत्ति-पुत्रके लिए परिग्रह
चट्टानोंपर ध्यान करना प्राकाम्य, ईशित्व और का भार सौंपना। इसीका
३४।१५४ वशित्व ये आठ सिद्धियाँ दूसरा नाम सकलदत्ति है।
भाधान- गर्भावय क्रियाका एक अथवा गुण कहलाते हैं। ३८।४०
भेद ३८५५ ३८।१९३ अपायविनय-धर्म्यध्यानका एक
भावश्यक- अवश्य करने योग्य अजीव-जानने देखनेकी शक्तिसे भेद ३६।१६१
छह कार्य - १ समता, रहित । इसके पाँच भेद अब्जचक्रवर्तीकी एक निधि । २ वन्दना, ३ स्तुति, ४ हैं - १ पुद्गल, २ धर्म, इसीका दूसरा नाम शङ्ख
प्रतिक्रमण, ५ स्वाध्याय ३ अधर्म, ४ आकाश और भी है ३७१७३
और ६ व्युत्सर्ग ३६।१३४ ५ काल । ३४।१९२
अभिषेक-गन्विय क्रियाका एक आजव-मायाचारको जीतना अणुव्रत-हिंसादि पांच पापोंका भेद ३८०६०
३६।१५७ एकदेश त्याग करना, ये ___अवतार- गर्भान्वय क्रियाका एक ____ आर्य षट्कर्म- इज्या, वार्ता, अहिंसाणुव्रत आदि पांच भेद ३८।६०
दत्ति, स्वाध्याय, संयम है। ३९।४ अवतार-दीक्षान्वय क्रियाका एक
और तप ये आर्योंके छह अनुप्रेक्षा- पदार्थके स्वरूपका भेद ३८।६४
कर्म है । ३९।२४ बार-बार चिन्तन करना। अरिषड्वर्ग-काम, क्रोध, लोभ, आहती- अरहन्त सम्बन्धी इसका दूसरा नाम भावना मोह, मद, मात्सर्य ये छह ३६।११५