________________
५२१
क्रियाका एक भेद ३८५९ निर्जरा- कोका एकदेश क्षय
__ होना ३६।१३८ निषद्या- गर्भावय क्रियाका एक
भेद ३८1५५ निष्क्रान्ति- गर्भावय क्रियाका
एक भेद ३८।६२ नैःसर्प- चक्रवर्तीको एक निधि
३७७३ नोकर्म- औदारिक, वैक्रियिक,
आहारक शरीर ४२।९१
पारिभाषिक शब्द-सूची त्रैगुण्यसंश्रिता- सम्यग्दर्शन, रूपसे स्थित बारह सभाएँ
सम्यग्ज्ञान और सम्यक- ४२।४५ चारित्र सम्बन्धी ३९।११५ द्वादशाङ्ग- आचाराङ्ग आदि
बारह अङ्ग ३४|१३३ दक्षिणाग्नि- वह अग्नि जिसके द्विज- ब्राह्मण, क्षत्रिय और द्वारा सामान्य केवलियोंके
वैश्य ३८०४८ शरीरका दाह संस्कार
द्वितीय शुक्लध्यान- एकत्वहोता है ४०१८४
वितक, यह बारहवें गुणदण्डकपाटादि- केवलिसमुदधात
स्थान में होता है ४७।२४७ के भेद-१ दण्ड, २ कपाट,
द्विधाम्नात- अन्तरङ्ग और बहि३ प्रतर और ४ लोकपूरण
रङ्गके भेदसे दो प्रकारका ३८१३०७
माना हुआ ३४।१७२ दण्ड- चक्रवर्तीका एक निर्जीव । द्विरष्टौ भावना- सोलह कारण रत्न ३७१८४
भावनाएँ १ दर्शनविशुद्धि, दत्ति- दान, इसके चार भेद हैं
२ विनय सम्पन्नता, ३ शोल१ पात्रदत्ति, २ समदत्ति,
व्रतेष्वनतो चार, ४ अभीक्ष्ण ३ अन्वयदत्ति और ४ ज्ञानोपयोग, ५ संवेग, ६ करुणादत्ति ३८।३५-३६
शक्तितस्त्याग, ७ शक्तिदयादत्ति- करुणा दान ३८३६ ।
तस्तप, ८ साधुसमाधि, ९ दशधर्म-१ क्षमा, २ मार्दव,
वैयावृत्यकरण, १० अर्हद्३ आर्जव, ४ शौच, ५ भक्ति, ११ आचार्यभक्ति, सत्य, ६ संयम, ७ तप, १२ बहुश्रुतभक्ति, १३ प्रव८ त्याग, ९ आकिंचन्य और
चन भक्ति, १४ आवश्यका१० ब्रह्मचर्य ३६।१३७
परिहाणि, १५ मार्गप्रभावना दिल्या जाति- इन्द्रकी जाति और १६ प्रवचनवात्सल्य
दिव्या जाति कहलाती है। ३९।१६८
धर्म्यध्यान- ध्यानका एक भेद, दिशाञ्जय- गर्भावय क्रियाका इसके चार भेद हैं-१ एक भेद ३८।६१
आज्ञा विचय, २ अपायविदीक्षाघ- गर्भान्वय क्रियाका एक चय, ३ विपाकविचय और भेद ३८।५७
४ संस्थानविचय ३६।१६१ दीक्षान्वय किया- एक विशिष्ट धूलीसाल- समवसरणका एक
क्रिया, इसके ४८ भेद होते कोट जो कि रत्नमयी धूलीसे है। ३८१५१
निर्मित होता है ३३।१६० दीपोद्बोधनसंविधि- पूजाके ति- गर्भान्वय क्रियाका एक
समय दीपक जलाना। इस भेद ३८१५५ कार्यमें दक्षिणाग्निका प्रयोग
होता है । ४०८६ नामकर्म- गर्भान्वय क्रियाका दृष्टिवाद- द्वादशाङ्गका बारहवाँ एक भेद ३८.५५ भेद ३४।१४६
निगोत- सम्मूर्च्छन जीव विशेष द्वादशगण- समवसरणमें गन्ध- ३८।१८ कुटीके चारों बोर परिक्रमा निःसत्वात्मभावना- गर्मान्वय
७१
पक्ष- एक वृत्तिका भेद-जिन
धर्मका पक्ष स्वीकृत करना
३९।१४५ पञ्चनमस्कारपद- णमोकार
मन्त्रःणमो अरहन्ताणं आदि
३९।४३ पन्चेन्द्रिय-१ स्पर्शन, २ रसना,
३ घ्राण, ४ चक्षु और ५ कर्ण ये पाँच इन्द्रियां हैं:
३६।१३० पम्चोदुम्बर-बड़, पीपल, पाकर,
ऊमर और अजीर
३८।१२२ पन- चक्रवर्तीकी एक निधि
३७१७३ परमनिर्वाण- कन्वय क्रियाका
एक भेद ३८।६७ परमा जाति-अरहन्त भगवान्की
परमा जाति कहलाती है
३९.१६८ परमार्हन्स्य- कन्वय क्रियाका
एक भेद ३८।६७ परमावधि- अवधिज्ञानका एक
भेद, जो मुनियों होता है
३६।१४७ परमेष्टिन्- अरहन्त, सिद्ध,
आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच परमेष्ठी हैं
३८।१८८ परिषह- समता भावसे वागत