Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 542
________________ आदिपुराणम् संख्यानसंग्रह- गर्भान्वय क्रिया- का एक भेद ३८।५६ ५२४ सदगृहित्व- कन्वय क्रियाका एक भेद ३८।६७ सप्तमय-१ इस लोकका भय, २ परलोकका भय, ३ वेदनाभय, ४ आकस्मिक भय, ५ मरण भय, ६ अगुप्तिभय और ७ अरक्षा भय ३४।१७६ सप्तभङ्गी-किसी पदार्थका निरू पण करने के लिए वक्ताकी इच्छासे होनेवाले सात-भंगों का समूह । जो इस प्रकार है-१ स्यादस्ति, २ स्यानास्ति, ३ स्यादस्तिनास्ति, ४ स्याद् अबक्तव्य, ५ स्याद् अस्ति अवक्तव्य, ६ स्याद् नास्ति अवक्तव्य, और ७ स्याद् अस्ति नास्ति अव क्तव्य, ३३।१३५ समवाय-द्वादशांगका चौथा भेद, ३४।१३८ . समानदत्ति- सहधर्मीके लिए दान देना । ३८।३८-३९ समिति- प्रमादरहित प्रवृत्ति करना। समितियाँ पाँच है--१ ईर्या, २ भाषा, ३ एषणा, ४ आदान निक्षेपण और ५ प्रतिष्ठापन, ३६।१३५ सर्वरत्न- चक्रवर्तीकी एक निधि, ३७१७३ सविधि- अवधिज्ञानका एक भेद जो मुनियोंके होता है ३६११४७ ये ४ हैं १ आहार, २ भय, ३ मैथुन और परिग्रह, ३६।१३१ संयम- पाँच इन्द्रिय और मन को वश करना तथा छह कायके जीवोंकी रक्षा करना ३६।१५७ संस्थानविचय- धर्म्यध्यानका एक भेद ३६।१६१ साधन- आयुके अन्त में संन्यास धारण करना, ३९।१४५ सामायिक- चारित्रका एक भेद जिसका सामान्य रूपसे समस्त पापोंका त्याग कर समताभाव धारण करना अर्थ ई ३४।१३० साम्राज्य- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद ३८।६२ साम्राज्य- कन्वयक्रियाका एक भेद ३८.६७ सिद्धार्थपादप- समवसरणमें विद्यमान एक वृक्ष ४०।२० सिद्धि- १ अणिमा, २ महिमा, ३ गरिमा, ४ लघिमा, ५ प्राप्ति, ६ प्राकाम्य, ७ ईशित्व, और ८ वशित्व ये आठ सिद्धियाँ है ३४१२१४ सुखोदय- गर्भान्वय क्रियाका एक.भेद ३८.६० सुप्रीति-- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद ३८५५ सुरेन्द्रता- कौन्वय क्रियाका एक भेद ३८।६७ सूत्र- यज्ञोपवीत ३९।९४ सूत्रकृत- द्वादशाङ्गका दूसरा भेद ३४।१३६ स्तूप- समवसरणमें विद्यमान ऊँची भूमि ४१।२० स्थपति- चक्रवर्तीका एक चेतन रत्न जिसे इंजीनियर कह सकते हैं ३२।२४ स्थानलाभ-दीक्षान्वय क्रियाका एक भेद ३८१६४ स्थानाध्ययन- द्वादशाङ्गका तीसरा भेद ३४।१३६ स्वाध्याय- शास्त्रका अध्ययन और भावना करना ३८।४१ स्वगुरुस्थानसंकान्ति- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद ३८।५९ स्वराज्य- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद ३८।६१ स्वात्मोत्था- मुक्त जीवोंकी स्वात्मोत्थ जाति कहलाती है। ३९।१६८ हरितकाय- वृक्ष, लता, फल, फूल आदि हरी वनस्पतियाँ ३४।१९४ हविष्पाक- नैवेद्य बनाना इसमें गार्हपत्यअग्निका उपयोग होता है ३४।८६ हिरण्योत्कृष्टजन्मता- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद ३८६०

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