Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 558
________________ आदिपुराणम् क्षेपीयस = अत्यन्त शीघ्र ४१।१७ क्षेम = प्राप्त हुई वस्तुको रक्षा करना २९।२८ क्षोदीयान् = अत्यन्त क्षुद्र ३४।३४ क्ष्मा = भूमि ३४१७६ क्ष्माज = वृक्ष ३५।१५३ क्ष्माध्र = पर्वत ३७।१६६ क्षमात्राण = पृथिवी रक्षा ३७।८३ गृहकोकिल = छिपकूलो ४६।३३८ गोगृष्टि = पहली बार बियानी हुई गाय २६।४६ गोत्रस्खलन = स्त्रीके सामने हृदयमें बसी हुई दूसरी स्त्रीका नाम उच्चरित होना ४६७ गोमतल्लिका = श्रेष्ठ गायें २६।४५ गाममृग = कुत्ता ३५।१२१ घनस्तनित = मेघगर्जना ३७।१३१ घस्मर = विनाशक ४४।१०६ कुपतित्व = भूपतिपना, खोटा राजपना ३०।१० कुमार =बालक ४५।४२ कुलाल = कुम्हार ३५।१२६ कुल्या = नहर ३५।४० कुवलय = पृथ्वीमण्डल, नील कमल ४३ ७७ कुसुमतु = वसन्त २७१४३ कुसुमवाण = कामदेव २७।१९ कूजित = पक्षियोंका कलरव २६.१५ कृतक्षण = कृतोत्साह ४१।१३९ कृतंकृतं = व्यर्थ-व्यर्थ ३६६७ कृतवेदी = कृतज्ञ ४३।११७ कृतसङ्गर=कृतप्रतिज्ञ ४३।५३ कृतानुबन्धन = जिनसे आग्रह किया गया ३८।१५ कृतान्तवाक = यमवचन ३९।२२ कृत्स्ना = सम्पूर्ण ४२।२०८ केतन = गृह ४७।२०७ केतुमालाकुल = पताकाओंके समूहसे व्याप्त ४११८४ करल = केरल देश के लोग २९।९४ केवलार्क = केवलज्ञान रूपी सूर्य ४११९ कोक = चकवा ३५।२३० कोककान्ता = चकवी ३५।२२३ कोटी = अग्रभाग, चरम सीमा ३०११३० कोश = म्यान ४७।१३५ कौशेयक = तलवार ३६।११ कौबेरी = उत्तर दिशा ३१४१ कौशिक = उल्लू ४११३७ क्रमज्ञ = क्रमको जाननेवाला खग = बाण ४४।१२१ . खग=विद्याधर ४७।२१ खण्डिता = वियोगिनी स्त्री, जिसका पति संकेत देकर भी न आवे ३५।१९३ खरघृणि = सूर्य ३६।२११ खरांशु = सूर्य २७१९३ खलकल्पाः = दुर्जनके समान ४४।११८ खेचर = विद्याधर ४६।३१७ ग गजता हाथियोंका समूह ३०।४८ गजप्रवेक = श्रेष्ठ हाथी ३०।१०५ गन्धर्व = व्यन्तर देवोंका एक __भेद ४१।२६ गरुडयावसच्छवि = नीलमणि के समान वर्णवाला ३६।४९ निवृति = शारीरिक सुख ३७।१२७ गान्धार = कान्धारके घोड़े चक्र = चक्रवर्तीका एक अजीव रत्न ३७४८४ चक्राह्व% चकवा २७।२८ चक्रोद्योत = चक्ररत्नका प्रकाश ३६।२३ चक्षुःश्रवस = साँप ३६।१७६ चञ्चापुरुष = तृणका बना पुरुष २८।१३० चण्डमरुत्-तेजवायु • आँधी ३०११०७ चतुष्क = चौराहा २६।३ चतुरस्रं = समचतुरस्रसंस्थानसे युक्त मनोज्ञ ३७।२८ चमरिरुह = चमर ३५।२४४ चरमाङ्गधर- तद्भवमोक्षगामी ३६॥३९ चर्याशुद्धि-चारित्रकी शुद्धता ३४।१३५ चातुरन्त-चतुर्दिगन्त ३५।११२ चातुरन्त = सब दिशाओंका स्वामी चक्रवर्ती २८१८५ चामीकर = स्वर्ण ३६५० चारभट = शूरवीर ३११६५ चारचक्षुः = गुप्तचररूपी नेत्रसे युक्त ४५।४१ चित्तज = काम ४५।८७ चित्तजन्मन् = काम ३७।४२ चुन्चुक = प्रतीत-प्रसिद्ध २९।९४ गुणग्राम = गुणोंका समूह ३५।५० गुप्ति = रक्षा ३६।११७ गुरु = पिता, भगवान् वृषभदेव ३६।१०४ गुरु = पिता ३८।१३७ गुरुकल्प = पितृतुल्य ३४।८१ गुर्वनुगृह = गुरुकी कृपा ३९।६५ गुल्फदन = घुटने प्रमाण ३३१७१ गृध्नु = लोभो ३५।१३३ ऋयक्रीत = मूल्य देकर खरीदा हुआ ३४।१९९ क्रमाब्ज= चरणकमल ३५१२४५ क्लम = खेद ३४।११७ क्षत्रिय = एक वर्ण ३८।४६ क्षीरस्यत् = दूधकी इच्छा रखने वाला २६।४८

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