Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 541
________________ पारिभाषिक शब्द-सूची ५२३ द्रव्य पाये जायें उसे लोक सत्य, ३ अचौर्य, ४ ब्रह्मचर्य यथाख्यात- चारित्र मोहके कहते हैं। यह १४ राजू ऊँचा और अपरिग्रह ३६।१३३ अभावमें प्रकट होनेवाला है और ३४३ राजू क्षेत्रफल व्रतचर्या-गर्भान्वय क्रियाका एक चारित्र। इसके औपशमिक वाला है । ३३॥१३२ भेद ३८१५६ और क्षायिकके भेदसे दो व्रतावतरण- गर्भान्वय क्रियाका भेद हैं । ४७।२४७ वर्णलाभ- गर्भान्वय क्रियाका __एक भेद ३८५६ योगत्याग- गर्भान्विय क्रियाका एक भेद ३८१५७ वृत्त-चारित्र- पापपूर्ण क्रियाओंएक भेद ३८।६२ वार्ता- खेतो आदिके द्वारा से विरत होना ३९।२४ योगनिर्वाणसंप्राप्ति- गर्भान्वय निर्दोष आजीविका करना व्याख्याप्रज्ञप्ति- द्वादशांगका क्रियाका एक भेद ३८५९ ३८।३५ पांचवाँ भेद ३४।१३८ यौवराज्य- गर्भान्वय क्रियाका विकथा- राग द्वेषको बढ़ानेवाली व्युष्टि- गर्भान्वय क्रियाका एक एक भेद ३८।६१ कथाएँ, ये चार हैं-१ स्त्री भेद ३८५६ योगसम्मह- गर्भान्वय क्रियाका कथा, २ राष्ट्र कथा, ३ एक भेद ३८।६२ भोजन कथा ४ और राज शल्य-१ माया, २ मिथ्या और योजन- चारकोशका एक योजन कथा ३६।१४० ३ निदान ये तीन शल्य है। होता है परन्तु अकृत्रिम विक्रिया- एक प्रकारकी ऋद्धि, व्रती मनुष्यके इनका अभाव चीजोंके नापमें दो हजार इसके ८ अवान्तर भेद हैं। होना चाहिए । ३६।१३७ कोशका योजन लिया जाता ३६।१५२ शुक्लध्यान- ध्यानका सर्वोत्कृष्ट है । ३३।१५९ विजयाश्रिता- चक्रवतियोंकी भेद ३६।१८४ योषित्- चक्रवर्तीका एक सचेतन जाति विजयाश्रिता जाति शौच- लोभका त्याग करना रत्न, स्त्री ३७१८४ कहलाती है । ३९।१६९ ३६३१५७ विधिदान- गर्भान्वय क्रियाका श्रीमण्डप- समवसरणका मूल रत्नत्रय- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एक भेद ३८६० मण्डप जिसमें भगवान्की और सम्यकचारित्र ये तीन विपाक विचय-धर्म्यध्यानका एक गन्धकुटी होती है । रत्नत्रय है । ३६।१३९ भेद ३६।१६१ ३३।१५९ रसद्धि- ऋद्धिका एक भेद विपाकसूत्र- द्वादशाङ्गका ग्यार श्रुत-पाँच इन्द्रियों और मनकी ३६।१५४ हवां भेद ३४।१४५ सहायतासे उत्पन्न होनेवाला रहस्- अन्तराय कर्म ३५।१८६ विपुलमति- मनःपर्यय ज्ञानका एक तर्कणाशील ज्ञान राजविद्या- आन्वीक्षिकी, त्रयी, ___उत्कृष्ट भेद ३६।१४७ ३६।१४२ वार्ता और दण्डनीति ये विमुक्तता-निष्परिग्रहता चार . राजविद्याएं हैं। ३४।१६९ ४१।१३९ विवाह-गर्भान्वय क्रियाका एक षडष्टकम्- अड़तालीस ( षण्णाभेद ३८1५७ मष्टकं षडष्टकम् ) ३९।६ लिपि- गर्भान्वय क्रियाका एक वीरासन-आसनका एक भेद, भेद ३८५६ जिसमें दोनों पगथली जंघा- . सज्जाति-कन्वय क्रियाका एक लेश्या-कषायके उदयसे अनु- पर रखकर ध्यानस्थ हुआ भेद ३८।६७ रञ्जित योगोंको प्रवृत्ति । जाता है ३४।१८७ सत्य- हितमित प्रामाणिक वचन इसके ६ भेद है-१ कृष्ण, वृत्तलाम- दीक्षान्वय क्रियाका बोलना ३६।१५७ २ नील, ३ कापोत, ४ पीत, एक भेद ३८।६४ सदार्चन-नित्यमह-पूजाका एक ५ पद्म और ६ शुक्ल । व्रत-हिंसादि पांच पापोंके त्याग- भेद घरसे लायी हुई सामग्नी३६।१८४ पे प्रकट होनेवाले पांच से जिनेन्द्रदेवका प्रतिदिन लोक- जहाँ तक जीव आदि छह महाव्रत- १ अहिंसा, २ पूजन करना ३८।२६ -

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