Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 494
________________ ४७६ आदिपुराणम् गुगपालमहाराजः सकुबेरप्रियोऽग्रहीत् । बहुभिर्भू भुजः सार्धं तपो यतिवरं श्रितः ॥३४१॥ श्रेष्टचाहिंसाफलालोकान्मयाऽयग्राहि तद्वतम् । तस्मात्वं'न हतोऽसीति ततस्तुष्टाव सोऽपि तम् ॥ इत्युक्त्वा सोऽब्रवीदेवं प्राक मृणालवतीपुर । भूत्वा त्वं भवदेवाख्यो रतिवेगासुकान्तयोः ॥३४३॥ बद्धवैशे ''निहन्ताऽभू: पारावतभवःप्यनु । मार्जारः सन्मृति 'गत्वा पुनः "खचरजन्मनि ॥३४४॥ विद्युच्चोरवमासाद्य सोपस मृति व्यधाः । तत्पापानरके दुःखमनुभूयागतस्ततः ॥३४५॥ अत्रेन्याखिलवेद्युत व्यक्तवाग विसरः स्फुटम् । व्यधात् सुधीः स्ववृत्तान्तं भीमसाधुः सुधाशिनोः । विः प्राक् त्वन्मारितावावामिति शुद्धियान्वितौ । जातसद्धर्मसभावावभिवन्द्य मुनि गतौ ॥३४७॥ इति व्याहृत्य हमाङगदानुजेदं च साऽब्रवीत् । भीमसाधुः पुरे पुण्डरीकिण्यां घातिघातनात् ॥३४८॥ रम्य शिवंकरोद्याने पञ्चमझानपूजितः । तस्थिवांस्तं समागत्य चतस्रो देवयोषितः ॥३४९॥ वन्दिया धर्ममाकार्य पापादस्मत्यतिम॑तः । त्रिलोकेश वदास्माकं पतिः कोऽन्यो भविष्यति ॥३५॥ इत्यच्छन्नसौ चाह पुरंऽस्मिन्नव भोजकः । सुरदेवाह्वयस्तस्य वसुषेणा वसुन्धरा ॥३५॥ सेठ कुबेरप्रिय तथा अन्य अनेक राजाओंके साथ-साथ मुनिराजके समीप जाकर तप धारण किया ॥३३८-३४१।। वह चाण्डाल कहने लगा कि सेठके अहिंसा व्रतका फल देखकर मैंने भी अहिंसा व्रत ले लिया था यही कारण है कि मैंने तुम्हें नहीं मारा है यह सुनकर उस विद्युच्चर चोरने भी उसकी बहुत प्रशंसा की ॥३४२॥ इतना कहकर वे भीम मुनि सामने बैठे हुए देव-देवियोंसे फिर कहने लगे कि सर्वजदेवने मुझसे स्पष्ट अक्षरों में कहा है कि 'तू पहले मृणालवती नगरीमें भवदेव नामका वैश्य हुआ था वहाँ तूने रतिवेगा और सूकान्तसे वैर बाँधकर उन्हें मारा था, मरकर वे दोनों कबूतर-कबूतरी हुए सो वहाँ भी तूने बिलाव होकर उन दोनोंको मारा था, वे मरकर विद्याधर-विद्याधरी हुए थे सो उन्हें भी तूने विद्युच्चोर होकर उपसर्ग-द्वारा मारा था, उस पापसे तू नरक गया था' और वहाँके दुःख भोगकर वहांसे निकलकर यह भीम हुआ हूँ । इस प्रकार उन बुद्धिमान् भीम मुनिने सामने बैठे हुए देव-देवियोंके लिए अपना सब वृत्तान्त कहा ।।३४३-३४६।। जिन्हें आपने पहले तीन बार मारा है वे दोनों हम ही हैं ऐसा कहकर जिनके मन, वचन, काय -- तीनों शुद्ध हो गये हैं और जिन्हें सद्धर्मकी सद्भावना उत्पन्न हुई है ऐसे वे दोनों देव-देवी उन भीममनिकी वन्दना कर अपने स्थानपर चले गये ॥३४७॥ यह कहकर हेमांगदकी छोटी बहन सुलोचना फिर कहने लगी कि एक समय पुण्डरीकिणी नगरीके शिवंकर नामके सुन्दर उद्यानमें घातिया कर्म नष्ट करनेसे जिन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है ऐसे भीममुनिराज विराजमान थे, सभी लोग उनकी पूजा कर रहे थे, उसी समय वहाँपर चार देवियोंने आकर उनकी वन्दना की, धर्मका स्वरूप सुना और पूछा कि हे तीन लोकके स्वामी. हम लोगोंके पापसे हमारा पति मर गया है। कहिए - अब दूसरा पति कौन १ तस्मात् कारणात् । २ एवं तलवरोऽवादीत् । ३ तलवरवचनानन्तरम् । ४ स्तौति स्म । ५ विद्युच्चोरः । ६ अहिंसाव्रतम् । तस्मात् त्वं न हतोऽसोति श्लोकस्य सोऽप्येवं प्रत्यपाद्यदित्यनेन सह संबन्धः । ७ उक्तप्रकारेण प्रतिपाद्य । स मुनिः पुनरप्यात्मनः सर्वज्ञेन प्रतिपादितनिजवृत्तकं सुरदम्पत्योराह। ८ वक्ष्यमाणप्रकारेण । ९ पूर्वजन्मनि । १० हे भीममुने, भवान् । ११ घातुकः । १२ कपोतभवेऽपि मार्जारः सन् तयोनिहन्ताऽभूरिति संबन्धः । १३ कृत्वा ल०, अ०, ५०, स०, इ०। १४ तद्दम्पत्यो विद्याधर भवे । खेचरजन्मनि प०, इ०। १५ सर्वज्ञप्रोक्तम् । १६ हिरण्यवर्मप्रभावतीचरौ। १७ मनोवाक्कायशुद्धियुक्तौ । १८ भीममुनिम् । १९ उक्त्वा । २० सुलोचना । २१ भीमः साधुः प०, इ०, ल०। २२ आस्ते स्म । २३ भीमकेवलो। २४ पुण्डरीकिण्याम् । २५ पालकः ।

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