Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 495
________________ षट्चत्वारिंशत्तमं पर्व धारिणी पृथिवी चेति चतस्रो योषितः प्रियाः । श्रीमती वीतशोकाख्या विमला सवसन्तिका ॥३५२॥ चतस्रश्चेटिकास्तासामन्येद्युस्ता वनान्तरे । सर्वा यतिवराभ्याशे धर्म दानादिनाऽऽददुः ॥३५३॥ तत्फलेनाच्युते कल्पे प्रतीन्द्रस्य प्रियाः क्रमात् । रतिषणा सुसीमाख्या मुख्यान्या च सुखावती ॥३५४॥ सुभगति च देव्यस्ता यूयं ताश्चेटिकाः पुनः । चित्रष्णा क्रमाच्चित्रवेगा धनवती सती ॥३५५॥ धनश्रीरित्यजायन्त वनदेवेषु कन्यकाः । सुरदेवेऽप्यभून्मृत्वा पिङ्गलः पुररक्षकः ॥३५६॥ स तत्र निजदोषेण प्रापन्निगलबन्धनम् । मातुस्तत्सुरदेवस्य प्राप्ता या राजसूनुताम् ॥३५७॥ श्रीपालाख्यकुमारस्य ग्रहणे बन्धमोक्षणे । सर्वेषां पिङगलाख्योऽपि मुक्तः संन्यस्य संप्रति ॥३५८॥ भूत्वा बुधविमानेऽसौ इहागत्य भविष्यति । स्वामी युष्माकमित्येतत्तच्चेतो हरणं तदा ॥३५९॥ परमार्थ कृतं तेन तां गत्य मुनेर्वचः । पृष्ट्वानु कन्य'काश्चनमात्मनो भाविनं पतिम् ॥३६०॥ पूर्वोक्तपिङ्गलाख्यस्य सूनुर्नाम्नाऽतिपिङ्गलः । सोऽपि संन्यस्य युप्माकं रतिदायी भविष्यति ॥३६१॥ इति तत्प्रोक्तमाकर्ण्य गत्वा तत्पूजनाविधौ। स्वसां निरीक्षणात् कामसंमोहप्रकृतं महत्॥३६२॥ रतिकूलाभिधानस्य संविधानं मुनेः श्रुतम् । तस्पितुर्मणिनागादिदत्तस्य प्रकृतं तथा॥३६३॥ होगा ? तब सर्वज्ञ -- भीम मुनिराज कहने लगे कि इसी नगरमें सुरदेव नामका एक राजा था उसकी वसुषेणा, वसुन्धरा, धारिणी और पृथिवी ये चार रानियाँ थों तथा श्रीमती, वोतशोका, विमला और वसन्तिका ये चार उन रानियोंकी दासियाँ थीं। किसी एक दिन उन सबने वनमें जाकर किन्हीं मुनिराजके समीप दान आदिके द्वारा धर्म करना स्वीकार किया था। उस धर्मके फलसे वे अच्युत स्वर्गमें प्रतीन्द्रकी देवियाँ हुई हैं। क्रमसे उनके नाम इस प्रकार हैं -- रतिषणा, सुसीमा, सुखावती और सुभगा। वह देवियाँ तुम्हीं सब हो, तथा तुम्हारी दासियाँ चित्रषेणा, चित्रवेगा, धनवती और धनश्री नामकी व्यन्तर देवोंकी कन्याएँ हुई हैं। राजा सुरदेव मरकर पिंगल नामका कोतवाल हुआ है और वह अपने ही दोषसे कारागारको प्राप्त हुआ था, सुरदेवकी माता राजाकी पुत्री हुई है और श्रीपालकुमारके साथ उसका विवाह हुआ है । विवाहोत्सवके समय सब कैदी छोड़े गये थे उनमें पिंगल भी छूट गया था, अब संन्यास लेकर अच्युत स्वर्गमें उत्पन्न होगा और वही तुम सबका पति होगा ! इधर मुनिराज ऐसे मनोहर वचन कह रहे थे कि उधर पिंगल संन्यास धारण कर अच्युत स्वर्गमें उत्पन्न हुआ और वहाँसे आकर उसने मुनिराजके वचन सत्य कर दिखाये। इतनेमें ही चारों व्यन्तर कन्याएं आकर सर्वज्ञदेवसे अपने होनहार पतिको पूछने लगीं ॥ ३४८--३६० ॥ मुनिराज कहने लगे कि पूर्वोक्त पिंगल नामक कोतवालके एक अतिपिङ्गल नामका पुत्र है वहो संन्यास धारण कर तुम्हारा पति होगा ॥३६१॥ भीम केवलीके ये वचन सुनकर चारों ही देवियाँ जाकर अतिपिंगलकी पूजा करने लगी, उसे देखनेसे उन देवियोंको कामका अधिक विकार हुआ था ॥३६२।। उन देवियोंने रतिकूल नामके मुनिका चरित्र सुना, उनके पिता मणिनागदत्तका चरित्र सुना, सुकेतुका १ स्वीकुर्वन्ति स्म । २ व्यन्तरदेवेषु । ३ तलवरः । ४ विवाहसमये । ५ च्युतविमानेऽसौ इ०, ५०, ल० । बुधविमानेशः, इत्यपि पाठः । बुधविमानाधिपतिः । ६ स्वामी युष्माकमित्यसौ चाहेत्यनेन सह संबन्धः । ७ पिङ्गलचरदेवेन । ८ केवल्युक्तप्रकारेण (क्रमेण) । ९ सर्वज्ञस्य । १० अनन्तरम् । ११ व्यन्तरकन्याः । १२ भीमकेवलिनम् । १३ पुरुषः । १४ अतिपिङ्गलस्य समीपं प्राप्य । १५ अतिपिङ्गलस्य परिचर्याविधौ । १६ चित्रसेनादिव्यन्तरकन्यकानाम् । तासाम् ल०,५०,द०।१७ कामसंमोहेन प्रकर्षेण कृतम् । १८ रतिकूलाभिधानस्य पुरुषस्य । १९ व्यापारम् । २० भीमकेवलिनः सकाशात् । २१ आकणितम् । २२ रतिकूलस्य जनकस्य । २३ चेष्टितम् ।

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