Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 464
________________ षट्चत्वारिंशत्तमं पर्व ७ जयः प्रासादमध्यास्य 'दन्तावलगतो मुदा । यदृच्छयाऽन्यदालोक्य गच्छन्तौ खगदम्पती ॥१॥ हा मे प्रभावतीत्येतद् आलपन्नतिविह्वलः । रतिमेवाहितः सद्यः सहायीकृत्य मूर्च्छया ॥ २ ॥ द्वन्द्वं तत्रैवालोक्य कामिनी । हा मे रतिवरेत्युक्त्वा साऽपि मूर्च्छामुपागता ॥३॥ . दक्ष चेट जनक्षिप्रकृतशीतक्रिया क्रमात् । सद्यः कुमुदिनीवाप प्रबोधं शीतदीधितेः ॥ ४ ॥ 'हिमचन्दनसंमिश्र वारिभिर्मन्दमारुतैः । सोऽप्यमूच्छे दिशः पश्यन् मन्दमन्दतनुत्रः ॥ ५ ॥ यूयं सर्वेऽपि सायन्तनाम्भोजानुकृताननाः । किमेतदिति तत्सर्वं जानानोऽपि स नागरः" ॥६॥ अनेकानुनयोपायैर्गोत्रस्खलन दुःखिताम् । सुलोचनां समाश्वास्य स्मरन् जन्मान्तरप्रियाम् ॥७॥ ” आकारसंवृत्तिं कृत्वा तामेवालपयन् " स्थितः । वञ्चनाचुञ्चवः "सर्वे प्रायः कान्तासु कामिनः ॥ ८ ॥ तयोर्जन्मान्तरात्मीयवृत्तान्तस्मृत्यनन्तरम् । स्वर्गादनुगतो बोधस्तृतीयो व्यक्तिमीयिवान् ७ ॥१॥ द्विलोक्य सपम्योsस्या श्रीमती सशिवंकरा । पराश्च मत्सरोद्रेकादित्यन्योन्यं तदाब्रुवन् ॥१०॥ अथानन्तर किसी अन्य समय जयकुमार अपने महलकी छतपर आरूढ़ हो शोभाके लिए बनवाये हुए कृत्रिम हाथीपर आनन्दसे बैठा था कि इतनेमें ही अपनी इच्छानुसार जाते हुए विद्याधर दम्पती दिखे, उन्हें देखकर 'हा मेरी 'प्रभावती' इस प्रकार कहता हुआ वह बहुत ही बेचैन हुआ और मृच्छकी सहायता पाकर शीघ्र ही प्रेमको प्राप्त हुआ । भावार्थ - पूर्वभवका स्मरण होने से मूच्छित हो गया ॥ १-२ ॥ इसी प्रकार सुलोचना भी उसी स्थानपर कबूतरोंका युगल देखकर 'हा मेरे रतिवर' ऐसा कहकर मूर्च्छाको प्राप्त हो गयी ||३|| जिस प्रकार चन्द्रमासे कुमुदिनी शीघ्र ही प्रबोधको प्राप्त हो जाती है- खिल उठती है उसी प्रकार चतुर दासी जनोंके द्वारा किये हुए शीतलोपचारके क्रमसे वह सुलोचना शीघ्र ही प्रबोधको प्राप्त हुई थी - मूर्च्छारहित हो गयी थी || ४ || कपूर और चन्दन मिले हुए जलसे तथा मन्द मन्द वायुसे कुछ लज्जित हुआ और दिशाओंकी ओर देखता हुआ वह जयकुमार भी मूर्च्छारहित हुआ ||५|| यद्यपि वह चतुर जयकुमार सब कुछ समझता था तथापि पूछने लगा कि तुम लोगोंके मुँह सन्ध्याकालके कमलों का अनुकरण क्यों कर रहे हैं ? अर्थात् कान्तिरहित क्यों हो रहे हैं ? ॥ ६ ॥ पतिके मुँह से - दूसरी स्त्रीका नाम निकल जानेके कारण दुःखी हुई सुलोचनाको जयकुमारने अनेक प्रकारके अनुनय-विनय आदि उपायोंसे समझाया तथा दूसरे जन्मकी प्रिया प्रभावती समझकर अपने मुँहका आकार छिपा वह उसीके साथ बातचीत करने लगा सो ठीक ही है क्योंकि सभी कामी पुरुष . स्त्रियोंके ठगनेमें अत्यन्त चतुर होते हैं ||७-८ ॥ उन दोनोंके जन्मान्तर सम्बन्धी अपना समाचार स्मरण होनेके बाद ही स्वर्ग पर्यायसे सम्बन्ध रखनेवाला अवधिज्ञान भी प्रकट हो गया || ९ || यह सब देखकर श्रीमती शिवंकरा तथा और भी जो सुलोचनाकी सोतें थीं वे उस समय ईर्ष्याके " १ शोभायै विन्यस्तकृत्रिमगज । दन्तावलमनो ल० । २ विद्याधरदम्पती । ३ प्रीतिम् । ४ प्राप्तः । स्वीकृतो । ५ कपोत । ६ सौधाग्रे । ७ चतुर । ८ कर्पूर । ९ ईषलज्जावान् । १० अस्तमयकाल । ११ निपुणः । १२ प्रभावतीति नामान्तरग्रहण, सुलोचनाया अग्रे प्रभावतीति अन्यस्त्रोनामग्रहण । १३ जन्मान्तरप्रियास्मरण - -जात रोमाञ्च भृत्याकारप्रावरणम् । १४ सम्भाषयन् । 'संभाषणमाभाषणमालापः कुरुकुञ्चिका' इति वैजयन्ती । १५ प्रतीताः । चञ्चत्रः ल० । १६ अवधिज्ञानम् । १७ गतवान् । १८ सुलोचनायाः । १९ ऊचुः ।

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