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चत्वारिंशत्तम पर्व शेषो विधिस्तु निःशेषः प्रागुतो नोच्यते पुनः । बहिर्यानक्रियामन्त्रः ततोऽयमनु गम्यताम् ।। १३४॥ बहिर्यानक्रिया - तत्रोपनयनिष्क्रान्तिभागी भव पदात्परम् । भवेद् वैवाहनिप्क्रान्तिभागी भव पदं ततः ॥ १३५॥ . क्रमान्मुनीन्द्र निष्क्रान्तिमागी भव पदं वदेत् । ततः सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव पदं स्मृतम् ॥ १३६॥ मन्दराभिवेकनिष्क्रान्तिभागीभव पदं ततः । यौवराज्यमहाराज्यपदे भागी भवान्विते ॥१३७॥ निष्कान्तिपदमध्ये स्तां परराज्यपदं तथा । आईत्यराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव शिखापदम् ॥१३८॥ पदैरेभित्यं मन्त्रस्तद्विद्भिरनुजप्यताम् । प्रागुतो विधिरन्यस्तु निषद्यामन्त्र उत्तरः ॥१३९॥
चूर्णिः-उपनयनिष्क्रान्तिभागीभव, वैवाहनिक्रान्तिभागी भव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागीभव, मन्दराभिषेकनिक्रान्तिभागी भव, यौवराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, परमराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, आर्हन्त्यनिष्क्रान्तिभागी झव, ( बहिर्यानमन्त्रः) . निषद्या -
दिव्यसिंहासनपदाद् भागी भव पदं भवेत् । एवं विजयपरमसिंहासनपदद्वयात् ॥१४०॥ नामोंका धारक हो और ‘परमाष्टसहसनामभागी भव' ( अत्यन्त उत्तम एक हजार आठ नामोंका पानेवाला हो ) ये मन्त्र पढ़ना चहिए ।
संग्रह-'दिव्याष्टसहसनामभागी भव, विजयाष्टसहसनामभागी भव, परमाष्टसहसनामभागी भव' ॥१३२-१३३।। बाकीकी समस्त विधि पहले कही जा चुकी है इसलिए दुबारा नहीं कहते हैं । अब आगे बहिर्यान क्रियाके मन्त्र नीचे लिखे अनुसार जानना चाहिए ॥१३४।।
सबसे पहले 'उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव', (तू यज्ञोपवीतके लिए निकल्नेशाला हो ) यह पद बोलना चाहिए और फिर 'वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव' ( विवाहके लिए बाहर निकलनेवाला हो ) यह मन्त्र पढ़ना चाहिए ॥१३५॥ तदनन्तर अनुक्रमसे 'मुनीन्द्रनिष्कान्तिभागी' भव' ( मुनिपदके लिए निकलनेवाला हो ) यह मन्त्र कहना चाहिए और उसके बाद 'सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव' ( सुरेन्द्र पदकी प्राप्तिके लिए निकलनेवाला हो ) यह पद बोलना चाहिए ॥१३६।। तत्पश्चात् 'मन्दरेन्द्राभिषेकनिष्क्रान्तिभागी भव' ( सुमेरुपर्वतपर अभिषेकके लिए निकलनेवाला हो) इस मन्त्रका उच्चारण करना चाहिए और फिर 'यौवराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' (युवराज पदके लिए निकलनेवाला हो) यह मन्त्र कहना चाहिए ।।१३७।। तदनन्तर 'महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' ( महाराज पदकी प्राप्तिके लिए निकलनेवाला हो ) यह पद बोलना चाहिए और उसके बाद 'परमराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव' ( चक्रवर्तीका उत्कृष्ट राज्य पानेके लिए निकलनेवाला हो ) यह मन्त्र पढ़ना चाहिए और इसके अनन्तर 'आर्हन्त्यराज्यभागी भव' ( अरहन्त पदकी प्राप्तिके लिए निकलनेवाला हो ) यह मन्त्र कहना चाहिए ॥१३८॥. इस प्रकार मन्त्रोंको जानेवाले द्विजोंको इन उपर्युक्त पदोंके द्वारा मन्त्रोंका जाप करना चाहिए । बाकी समस्त विधि पहले कह चुके हैं। अब आगे निषा मन्त्र कहते हैं ॥१३९॥
संग्रह-'उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव, वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, सुरेन्द्रनिष्कान्तिभागी भव, मन्दराभिषेकनिष्कान्तिभागी भव, यौवराज्यनिष्कान्तिभागी भव, महाराज्यनिष्कान्तिभागी भव, परमराज्यनिष्कान्तिभागी भव, आर्हन्त्यनिष्कान्तिभागी भव।
निषद्यामन्त्र :-'दिव्यसिंहासनभागी भव' (दिव्य सिंहासनका भोक्ता हो - इन्द्रके १ ज्ञायताम् । २ स्याताम् । ३ अन्त्यपदम् ।