Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 403
________________ त्रिचत्वारिंशत्तमं पर्व ३८५ मालिनी प्रियदुहितरमेनां नाथवंशाम्बरेन्दोरमुमु पनयति स्म स्पष्टसौभाग्यलक्ष्मीः । ज्वलितमहसमन्यां वीरलक्ष्मों च कीर्ति कथयति नयतीति प्रातिभज्ञानमुच्चैः ॥३३६॥ शार्दूलविक्रीडितम् एतत्पुण्यमयं सुरूपमहिमा सौभाग्यलक्ष्मीरियं जातोऽस्मिन् जनकः स योऽस्य जनिका सैवास्य या सुप्रजा ॥ पूज्योऽयं जगदेकमङ्गलमणिश्चडामणिः श्रीभृतामित्युक्तिर्जयमागजयं प्रति जनैर्जातोत्सवैर्जल्पिता ॥३३७॥ मालिनी कुवलयपरिबोधं संदधानः समन्तात् संततविततदीप्तिः सुप्रतिष्टः प्रसन्नः । परिणतिनिजशौर्येणार्कमाक्रम्य दिक्षु प्रथितपृथुलकीर्त्या वर्द्धमानो जयः स्तात् ॥३३८॥ इति समुपगता श्रीः सर्वकल्याणभाजं जिनपतिमतमाक्त्वात्पुण्यमाज जयं तम् । तदुरुकृतमुपाध्वं हे बुधाः श्रद्दधानाः परमजिनपदाजद्वन्द्वमद्वन्द्ववृत्त्या ॥ ३३१ ॥ इत्यार्षे भगवजिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रह स्वयंवरमालारोपण कल्याणकं नाम त्रिचत्वारिंशत्तम पर्व ॥४३॥ प्रफुल्लित करनेके लिए बन्धुके समान था और जिसकी कान्ति अचिन्त्य थी ऐसा सूर्य और चन्द्रमाको जीतनेवाला वह जयकुमार अत्यन्त सुशोभित हो रहा था ॥३३५।। जिसकी सौभाग्यरूपी लक्ष्मी स्पष्ट प्रकट हो रही है ऐसे उस जयकुमारने नाथवंशरूपी आकाशके चन्द्रमा स्वरूप राजा अकम्पनकी प्रिय पुत्री सुलोचनाको विवाहा था सो ठीक ही है क्योंकि प्रतिभाशाली मनुष्योंका उत्कृष्ट ज्ञान यही कहता है कि देदीप्यमान प्रतापके धारक पुरुषको ही अनोखी वोरलक्ष्मी और कीर्ति प्राप्त होती है ॥३३६॥ उस समय जिन्हें आनन्द प्राप्त हो रहा है ऐसे लोगोंके द्वारा, जयकुमारके प्रति उसकी विजयको सूचित करनेवाली निम्नप्रकार बातचीत हो रही थी कि इस संसारमें यही पुण्य है, यही उत्तम रूपकी महिमा है, यही सौभाग्यकी लक्ष्मी है, जिसके यह उत्पन्न हुआ है वही पिता है, जिसने इसे उत्पन्न किया है वही उत्तम सन्तानवती माता है. यही लक्ष्मीवान् पूरुषोंमें चूड़ामणि स्वरूप है और संसारका कल्याण करनेवाले रत्नके समान यही एक पूज्य हैं ॥३३७॥ जो चारों ओरसे कुवलय अर्थात् पृथ्वीमण्डल ( पक्षमें रात्रि विकासी कमलों ) को प्रसन्न अथवा प्रफुल्लित करता रहता है, जिसकी कान्ति सदा फैली रहती है, जिसकी प्रतिष्ठा उत्तम है और जो सदा प्रसन्न रहता है ऐसा यह ( चन्द्रमाका सादृश्य धारण करनेवाला ) जयकुमार अपने परिपक्व प्रतापसे सूर्यपर भी आक्रमण कर दिशाओं में फैली हुई बड़ी भारी कीर्तिसे सदा बढ़ता रहे ॥३३८॥ इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान्के मतकी उपासना करनेसे बहुत भारी पुण्यका उपार्जन करनेवाले और सब प्रकारके कल्याणोंको प्राप्त होनेवाले जयकुमारको लक्ष्मी प्राप्त हुई थी इसलिए हे श्रद्धावन्त विद्वान् पुरुषो, तुम लोग भी निराकुल होकर परम दयालु सर्वोत्कृष्ट जिनेन्द्रदेवके दोनों चरणकमलोंकी उपासना करो ॥३३॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहके . हिन्दी भाषानुवादमें सुलोचनाके स्वयंवरका वर्णन करनेवाला यह तैतालीसवाँ पर्व पूर्ण हुआ। १ पुत्रीम्। २ अयमुप-त०, इ०, अ०, ५०, स०१ ३ जयकुमारम् । ४ प्रतिभव प्रातिभं तच्च तद्ज्ञानं च । प्रतिपुरुषसमुद्भूतप्रतिभाज्ञानमित्यर्थः । ५ लोके । ६-माता। ७ सुपुत्रवतो। ८ मङ्गलदर्पणः । ९ सुस्थैर्यवान् । १० भूयात् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566