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चत्वारिंशत्तमं पर्व
३०३ भागी भवपदान्तश्च क्रमाद्वाच्यो मनीषिभिः । तिमन्त्रमितो वक्ष्ये प्रीत्या शृणुत भो द्विजाः ॥१०॥ __ चूर्णि:-अवतारकल्याणभागी भव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागी भव, निष्क्रान्तिकल्याणभागी भव, आर्हन्त्यकल्याणभागी भव, परमनिर्वाणकल्याणमागी भव, ( सुप्रीतिमन्त्रः )।
प्रतिक्रियामन्त्रःआधानमन्त्र एवात्र सर्वत्राहितदातृवाक् । मध्ये यथाक्रमं वाच्यो नान्यो भेदोऽत्र कश्चन ॥१०१॥
चूर्णि:-सजातिदातृभागी मव, सद्गृहिदातृभागी भव, मुनीन्द्र दातृभागी भव, सुरेन्द्रदातृभागी भव, परमराज्यदातृभागी भव, आर्हन्त्यपददातृभागी भव, परमनिर्वाणदातृभागी भव, (प्रतिक्रियामन्त्रः) ।
मोदक्रियामन्त्रःमन्त्री मोदक्रियायां च मतोऽयं मुनिसत्तमैः । पूर्व सज्जातिकल्यागभागी भव पदं वदेत् ॥१०२॥ ततः सद्गृहिकल्याणभागी भव पदं पठेत् । ततो वैवाहकल्याणभागी भव पदं मतम् ॥१०॥ ततो मुनीन्द्रकल्याणभागी भव पदं स्मृतम् । पुनः सुरेन्द्रकल्याणभागी भव पदात्परम् ॥१०॥
मन्दराभिषेककल्याणमागीति च भवेति च । तस्माच्च यौवराज्यादिकल्याणपदसंयुतम् ॥१०५॥ प्राप्त करनेवाला हो ) ये मन्त्र विद्वानोंको अनुक्रमसे बोलना चाहिए। अब आगे धृतिमन्त्र कहते हैं सो हे द्विजो, उन्हें तुम प्रीतिपूर्वक सुनो ॥९७-१००॥
संग्रह-'अवतारकल्याणभागी भव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागी भव, निष्क्रान्तिकल्याणभागी भव, आर्हन्त्यकल्याणभागी भव, परमनिर्वाणकल्याणभागी भव' ।।
धृतिक्रियाके मन्त्र-गर्भाधान क्रियाके मन्त्रोंमें सब जगह दातृ शब्द लगा देनेसे धृति क्रियाके मन्त्र हो जाते हैं, विद्वानोंको अनुक्रमसे उन्हींका प्रयोग करना चाहिए, आधान क्रियाके मन्त्रोंसे इन मन्त्रोंमें और कुछ भेद नहीं है। भावार्थ-'सज्जातिदातृभागी भव' ( सज्जाति-उत्तम जातिको देनेवाला हो ), 'सद्गृहिदातृभागी भव' ( सद्गृहस्थपदका देनेवाला हो ), 'मुनीन्द्रदातृभागी भव' ( महामुनिपदका देनेवाला हो ), 'सुरेन्द्र दातृ भागी भव' ( सुरेन्द्रपदको देनेवाला हो ), 'परमराज्यदातृभागी भव' ( उत्तमराज्य-चक्रवर्तीके पदका देनेवाला हो), आर्हन्त्यदातभागी भव' ( अरहन्त पदका देनेवाला हो ) तथा 'परमनिर्वाणदातृभागी भव ( उत्कृष्ट निर्वाण पदका देनेवाला हो ) धति क्रियामें इन मन्त्रोंका पाठ करना चाहिए ॥१०॥
संग्रह-'सज्जातिदातृभागी भव, सद्गृहिदातृभागी भव, मुनीन्द्रदातृभागी भव, सुरेन्द्रदातृभागी भव, परमराज्यदातृभागी भव, आर्हन्त्यदातृभागी भव, परमनिर्वाणदातृभागी भव' ।
__ अब मोदक्रियाके मन्त्र कहते हैं - उत्तम मुनियोंने मोदक्रियाके मन्त्र इस प्रकार माने हैं सबसे पहले 'सज्जातिकल्याणभागी भव' ( सज्जातिके कल्याणको धारण करनेवाला हो) यह पद बोलना चाहिए, फिर सद्गृहिकल्याणभागी भव उत्तम गृहस्थके कुल्याणका धारण करनेवाला हो ) यह पद पढ़ना चाहिए, तदनन्तर 'वैवाहकल्याणभागी भव' ( विवाहके कल्याणको प्राप्त करनेवाला हो) इस पदका उच्चारण करना चाहिए, फिर 'मुनीन्द्रकल्याणभागी भव' ( महामुनि पदके कल्याणको प्राप्त करनेवाला हो ) यह मन्त्र बोलना चाहिए, इसके बाद 'सुरेन्द्रकल्याणभागी भव' ॥१०२॥ [ इन्द्र पदके कल्याणका उपभोग करनेवाला हो ], यह पद कहना चाहिए, फिर 'मन्दराभिषेककल्याणभागी भव' [सुमेरु पर्वतपर अभिषेकके कल्याणको प्राप्त हो] यह मन्त्र पढ़ना चाहिए, अनन्तर 'यौवराज्यकल्याणभागी भव' [ युवराज पदके कल्याणका उपभोग करनेवाला हो ] यह पद कहना चाहिए, तत्पश्चात् मन्त्रोंके प्रयोग करने में विद्वान् लोगोंको 'महाराज्यकल्याणभागी भव' [ महाराज पदके कल्याणका उपभोक्ता हो ] यह १ मतो ल० । मथो द० । २ धृतिक्रियायाम् ।