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पञ्चत्रिंशत्तमं पर्व जयकरिघटाबन्धै रुन्धन दिशो मदविह्वलै
लपरिवृढेरारूढश्रीरुदूढपराक्रमः । नृपकतिपयैरारादेत्य प्रणम्य दिदृक्षितो
भुजबलि युवा भेजे सैन्यैर्भुवं समरोचिताम् ॥२४॥ • इत्याचे भगवजिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे
कुमारबाहुबलिरणोद्योगवर्णनं नाम पञ्चत्रिंशत्तमं पर्व ॥३५॥
उत्कृष्ट तथा राजाओंके योग्य, विजय करानेवाले मंगल-गीतोंके द्वारा बाहुबली महाराज विजय प्राप्त करनेके लिए जगे और जिस प्रकार ऐरावत हाथी निद्रा छूट जानेसे गंगाके किनारेकी भूमिका साथ धीरे-धीरे छोड़ता है उसी प्रकार उन्होंने भी निद्रा छूट जानेसे धीरे-धीरे शय्याका साथ छोड़ दिया ॥२४८॥ सेनाके मुख्य-मुख्य लोगोंके द्वारा जिसकी शोभा बढ़ रही है, जो स्वयं विशाल पराक्रम धारण किये हुए हैं और कितने ही राजा लोग दूर-दूरसे आकर प्रणाम करते हुए जिसे देखना चाहते हैं ऐसा वह तरुण बाहुबली मदोन्मत्त विजयी हाथियोंकी घटाओंसे दिशाओंको रोकता हुआ सेनाके साथ-साथ युद्धके योग्य भूमिमें जा पहुँचा ॥२४२।। इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीत तिरसठशलाकापुरुषोंका वर्णन करनेवाले महापुराणसंग्रह में कुमार बाहुबलीके युद्धका उद्योग
वर्णन करनेवाला पैंतीसवां पर्व समाप्त हुआ।
१ समूहः । २ व्याप्नुवन् । ३ सेनामहत्तरैः। ४ कतिपयैर्नृपैः ।