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आदिपुराणम्
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भूरेणवस्तदाश्वीयखुरोद्धताः खलङ्घिनः । क्षणविघ्नितसंप्रेक्षाः प्रचकुरमराङ्गनाः ॥ २२ ॥ रजः संतमसे रुद्वदिक्चक्रे व्योमलङ्घिनि । चक्रोद्योतो नृणां चक्रे दृशः स्वविषयोन्मुखीः ॥ २३ ॥ समुद्रसप्रायैः भटालापैर्महीश्वराः । प्रयाणके धृतिं प्रापुर्जनजल्पैरपीदृशैः ॥२४॥ रणभूमिं प्रसाध्यात् स्थितो बाहुबली नृपः । अयं च नृपशार्दूलः प्रस्थितो निर्नियन्त्रणः ॥२५॥ नविनः किन्नु न स्याद् भ्रात्रोरनयोरिति । प्रायो न शान्तये युद्धमानयोरनुजीविनाम् ॥२६॥ विरूपकमि युद्धमारब्धं भरतेशिना । ऐश्वर्यमददुर्वाराः स्वैरिणः प्रभवोऽथवा ॥२७॥ इ मुकुद्धाः किं नैनौ वारयितुं क्षमाः । येऽमी समग्रसामग्रया सङ्ग्रामयितुमागताः ॥ २८ ॥ अहो महानुभावोऽयं कुमारो भुजविक्रमी । क्रुद्धे चक्रधरेऽप्येवं यो योद्धं, संमुखं स्थितः ॥ २६ ॥ "अथवा तन्त्रभूयस्त्वं न जया मनस्विनः । ननु सिंहो जयत्येकः संहितानपि " दन्तिनः ॥ ३० ॥ अयं च चक्रभृद् देवो नेष्टः सामान्यमानुषः । योऽभिरक्ष्यः सहस्रेण प्रणत्राणां सुधाभुजाम् ॥३१॥ तन्मा भूदनयोर्युद्धं जनसंक्षयकारणम् । कुर्वन्तु देवताः शान्ति यदि संनिहिता इमाः ॥ ३२ ॥ इति माध्यस्थ्यवृत्त्यैके" जनाः श्लाघ्यं वचो जगुः । पक्षपातहताः केचित् स्वपक्षोत्कर्ष मुज्जगुः ॥ ३३ ॥ युद्धका प्रारम्भ सुनकर जिनके चित्त व्याकुल हो रहे हैं ऐसी स्त्रियोंको वीर योद्धा बड़ी धीरताके साथ समझाकर आश्वासन दे रहे थे || २१ | | उस समय घोड़ोंके खुरोंसे उठी हुई और आकाशको उल्लंघन करनेवाली पृथिवीकी धूल क्षण-भरके लिए देवांगनाओंके देखने में भी बाधा कर रही थी || २२|| समस्त दिशाओंको व्याप्त करनेवाले और आकाशको उल्लंघन करनेवाले उस धूलिसे उत्पन्न हुए अन्धकारमें चक्ररत्नका प्रकाश ही मनुष्योंके नेत्रोंको अपनाअपना विषय ग्रहण करनेके सम्मुख कर रहा था || २३ || राजा लोग रास्ते में अत्यन्त उत्कट वीररससे भरे हुए योद्धाओंके परस्परके वार्तालापसे तथा इसी प्रकारके अन्य लोगोंकी बातचीतसे ही उत्साहित हो रहे थे ||२४|| उधर राजा बाहुबली रणभूमिको दूरसे ही युद्धके योग्य बनाकर ठहरे हुए हैं और इधर राजाओं में सिंहके समान तेजस्वी महाराज भरत भी यन्त्रणा - रहित (उच्छृंखल ) होकर उनके सम्मुख जा रहे हैं ||२५|| नहीं मालूम इस युद्ध में इन दोनों भाइयोंका क्या होगा ? प्रायः कर इनका यह युद्ध सेवकों की शान्तिके लिए नहीं है । भावार्थ इस युद्ध में सेवकों का कल्याण दिखाई नहीं देता है ||२६|| भरतेश्वरने यह युद्ध बहुत ही अयोग्य प्रारम्भ किया है सो ठीक है क्योंकि जो ऐश्वर्यके मदसे रोके नहीं जा सकते ऐसे प्रभु लोग स्वेच्छाचारी ही होते हैं ||२७|| जो ये मुकुटबद्ध राजा समस्त सामग्री के साथ युद्ध करनेके लिए आये हुए हैं वे क्या इन दोनोंको नहीं रोक सकते हैं ? ||२८|| अहो, भुजाओंका पराक्रम रखनेवाला यह कुमार बाहुबली भी महाप्रतापी है जो कि चक्रवर्तीके कुपित होनेपर भी इस प्रकार युद्धके लिए सम्मुख खड़ा हुआ है || २९ ॥ अथवा शूरवीर लोगों को सामग्री की अधिकता विजयका कारण नहीं है क्योंकि एक ही सिंह झुण्डके झुण्ड हाथियों को जीत लेता है। ||३०|| नमस्कार करते हुए हजारों देव जिसकी रक्षा करते हैं ऐसा यह चक्रको धारण करनेवाला भरत भी साधारण पुरुष नहीं है ||३१|| इसलिए जो अनेक लोगोंके विनाशका कारण है ऐसा इन दोनोंका युद्ध नहीं हो तो अच्छा है, यदि देव लोग यहाँ समीपमें हों तो वे इस युद्धकी शान्ति करें ||३२|| इस प्रकार कितने ही लोग मध्यस्थ भावसे प्रशंसनीय वचन कह रहे थे
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१ आकाशलङ्घिनः । २ आलोकनाः । ३ रजोऽन्धकारे । ४ वीररसबहुलै: । ५ अलंकृत्वा । ६ समीपे । ७ नृपश्रेष्ठः भरत इत्यर्थः । ८ निरङ्कुशः । ९ भटानाम् । १० कष्टम् । ११ - वो यतः ल० । १२ युद्धं - कारयितुम् । १३ तथाहि । १४ सेनाबाहुल्यम् । १५ संयुक्तान् । १६ देवानाम् । १७ तत् १८ अन्ये ।
कारणात् ।