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आदिपुराणम् किमत्र बहुना रत्नैः कृतोऽर्धः स्वर्णदीजलम् । पाद्यं रत्रार्चिषो दीपास्तण्डुलेज्या च मौक्तिकैः ॥१९३॥ हविः पीयूषपिण्डेन धूपो देवद्रुमांशकैः । पुष्पार्चा पारिजातादिसुरागसुमनश्चयैः ॥१९॥ सरत्ना निधयः सर्वे फलस्थाने नियोजिताः । पूजां रत्नमयीमित्थं रत्नेशो निरवर्तयत् ॥१६५॥ सुराश्वासन कम्पेन ज्ञाततत्केवलोदयाः । चक्रुरस्य परामिज्यां शतावरपुरःसराः ॥१९६॥ ववुर्मन्दं स्वरुद्यानतरुधूननचुञ्चवः । तदा सुगन्धयो वाताः स्वधुनीशीकराहराः ॥१९७॥ मन्द्रं पयोमुचा मार्ग दध्वनुश्च सुरानकाः । पुष्पोत्करो दिवोऽपतत् कल्पानोकहसंभवः ॥१९८॥ रत्नातपत्रमस्योच्चैर्निर्मितं सुरशिल्पिभिः । परायमणिनिर्माणमभाद. दिव्यं च विष्टरम् ॥१९९॥ स्वयं व्यधूयतास्योच्चैः प्रान्तयोश्चामरोत्करः । सभावनिश्च तद्योग्या पप्रथे प्रथितोदया ॥२०॥ सुरैरित्यर्चितः प्राप्तकेवलर्द्धिः स योगिराट् । व्यारान्मुनिभिर्जुष्टः शशीवोडुभिराश्रितः ॥२०१॥ घातिकर्मक्षयोद्भतामुद्वहन् परमेष्ठिताम् । विजहार महीं कृत्स्नां सोऽभिगम्यः सुधाशिनाम् ॥२०२॥ इत्थं स विश्वविद्विश्वं प्रीणयन् स्ववचोऽमृतैः । कैलासमचलं प्रापत् पूतं संनिधिना गुरोः ॥२०३॥
मन्त्रियोंके साथ, राजाओंके साथ और अन्तःपुरकी समस्त स्त्रियों तथा पुरोहितके साथ उन बाहुबली मुनिराजको बड़े हर्षसे नमस्कार किया था ॥१९२॥ इस विषयमें अधिक कहाँतक कहा जावे, संक्षेपमें इतना ही कहा जा सकता है कि उसने रत्नोंका अर्घ बनाया था, गंगाके जलकी जलधारा दी थी, रत्नोंकी ज्योतिके दीपक चढ़ाये थे, मोतियोंसे अक्षतकी पूजा की थी, अमृतके पिण्डसे नैवेद्य अर्पित किया था, कल्पवृक्षके टुकड़ों ( चूर्णो ) से धूपकी पूजा की थी, पारिजात आदि देववृक्षोंके फूलोंके समूहसे पुष्पोंकी अर्चा की थी, और फलोंके स्थानपर रत्नोंसहित समस्त निधियाँ चढ़ा दी थीं इस प्रकार उसने रत्नमयी पूजा की थी ॥१९३-१९५।। आसन कम्पायमान होनेसे जिन्हें बाहुबलीके केवलज्ञान उत्पन्न होनेका बोध हुआ है ऐसे इन्द्र आदि देवोंने आकर उनकी उत्कृष्ट पूजा की ।।१९६॥ उस समय स्वर्गके बगीचेके वृक्षोंको हिलानेमें चतुर तथा गंगा नदीकी बूंदोंको हरण करनेवाला सुगन्धित वायु धीरे-धीरे बह रहा था ॥१९७।। देवोंके नगाड़े आकाशमें गम्भीरतासे बज रहे थे और कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न हुआ फूलोंका समूह आकाशमें पड़ रहा था ॥१९८॥ उनके ऊपर देवरूपी कारीगरोंके द्वारा बनाया हुआ रत्नोंका छत्र सुशोभित हो रहा था और नीचे बहुमूल्य मणियोंका बना हुआ दिव्य सिंहासन देदीप्यमान हो रहा था ॥१९९॥ उनके दोनों ओर ऊँचाईपर चमरोंका समूह स्वयं दुल रहा था तथा जिसका ऐश्वर्य प्रसिद्ध है ऐसी उनके योग्य सभाभूमि अर्थात् गन्धकुटी भी बनायी गयी थी ॥२००॥ इस प्रकार देवोंने जिनकी पूजा की है और जिन्हें केवलज्ञानरूपी ऋद्धि प्राप्त हुई है ऐसे वे योगिराज अनेक मुनियोंसे घिरे हुए इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे मानो नक्षत्रोंसे घिरा हुआ चन्द्रमा ही हो ॥२०१॥ जो घातियाकर्मोके क्षयसे उत्पन्न हुई अर्हन्त परमेष्ठीकी अवस्थाको धारण कर रहे हैं तथा इसीलिए देव लोग जिनकी उपासना करते हैं ऐसे भगवान् बाहुबलीने समस्त पृथिवीमें विहार किया ॥२०२॥ इस प्रकार समस्त पदार्थोंको जाननेवाले बाहुबली अपने वचनरूपी अमृतके द्वारा समस्त संसारको सन्तुष्ट करते हुए, पूज्य पिता भगवान् वृषभदेवके सामीप्यसे पवित्र हुए कैलास पर्वतपर जा पहुँचे ॥२०३॥
१चरुः । २ हरिचन्दनशकलः । ३ इन्द्र । ४ उभयपाश्वयोः । ५ सेवितः । ६ आराध्यः । ७ वृषभस्य ।