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એક એલક
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बुलाकर महिलाश्रमका काम सौंपनेका निश्चय किया । और श्री मगनभाईने उसे मंजूर भी किया । इसके अनुसार आश्रमकी बहनोंका सोरा भार उनको सौंपा गया ।
मगनभाई तो कुशल सेवक और व्यवस्थापक ठहरे | इसलिए उन्होंने थोड़े ही दिनों में आश्रमकी व्यवस्था और बहनोंकी शिक्षा आदिका काम ठीकसे जमा दिया । बापूजी तो उनकी मददके लिए थे ही । मगनभाई बीच बीच में बापूजी की सलाह-सूचना लेने मगनवाड़ी और बादमें सेवाग्राम आया करते थे । मगनभाईने अपनी कार्य1- कुशलता और स्नेहपूर्ण व्यवहारसे बहनोंको पूरा संतोष दिया । और संस्थाका कार्यक्रम इस प्रकार बनाया कि सारी व्यवस्था आजतक सही मार्ग पर चल रही है । मगनभाई बापूजीके उन रिज़र्व सिपाहियोंमें से रहे, जिन्हें जरूरत पड़ने पर किसी भी मोर्चे पर विश्वास के साथ भेजा जा सकता था ।
महिलाश्रम हिन्दुस्तान में अपने ढंगकी एक ही संस्था है । वहाँ पर बहनें आश्रम - जीवन के साथ शिक्षण ग्रहण करती हैं और ग्रामोद्योगोंका भी पूरा अभ्यास करती हैं । सबसे बड़ी बात तो यह हैं कि बहनोंके कामके लिए न तो वहाँ रसोईया है, न भंगी । रसोईसे लेकर भंगीकाम तक सब कार्य बहनें अपने आप ही कर लेती हैं। एसी संस्थाको श्री. मगनभाईकी मदद मिलना सोनेमें सुगंध जैसा सिद्ध हुआ । १९३६ के बाद उन्हें गुजरात में आना पड़ा । इससे आश्रमको उनका अभाव तो महसूस हुआ, लेकिन उनकी व्यवस्था चालू रहनेसे महिलाश्रमके काममें कोई विघ्न नहीं पड़ा । उनकी इस सेवाके लिए महिलाश्रम सदा उनका आभारी रहेगा ।
श्री. मगनभाईके साथ फिर तो मेरा इतना घनिष्ठ सम्बन्ध बंधा कि जब मैं अहमदाबाद आता हूँ तब उन्हींके घरमें अपना अधिकार समझकर ठहराता हूँ | श्री. मगनभाई तथा श्री. डाहीबहनका आतिथ्य और प्रेमभाव अद्भुत है । अपने ऐसे कार्यकुशल सेवकका गुजरात सम्मान कर रहा है, यह बडे आनन्दकी बात है । मेरी हार्दिक शुभ कामनायें हमेशा उनके साथ हैं । भगवान से प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों तथा अधिक तत्परता और कुशलता से जनता जनार्दनकी सेवा करने और तपश्चर्या द्वारा उसके लिए बल प्राप्त करनेमें समर्थ हों ।
' अभिनंदन ग्रंथ ' से ]
बलवन्तसिंह
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