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- श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् एवं प्रबुद्ध चिन्तक आचार्य श्री सुदर्शनलाल जी म. सा. का सम्पादन एवं परामर्श के रूप में निरन्तर बहुमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ।
मुनि श्री प्रियदर्शन जी के साथ मैंने इस कार्य को हाथ में लिया, इस संकल्प के साथ कि इस चातुर्मासावधि के भीतर ही इसे परिसमाप्त करना है, हमारा यह सम्मिलित कार्य प्रातः, मध्याह्न, अपरान्ह तीनों समय लगभग चलता रहा और यह व्यक्त करते हुए हमें आत्म परितोष होता है कि चातुर्मासावधि के परिसमापन के लगभग एक मास पूर्व ही यह कार्य भली भाँति सम्पन्न हो गया ।
मूल टीकाकार के, भावों को अविच्छिन्न रखते हुए हमने अधुनातन प्राञ्जल हिन्दी में यह अनुवाद प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया है । वाक्य संरचना का ऐसा क्रम रखा है कि मूल के बिना भी यदि केवल अनुवाद को ही पढ़ा जाये तो भी भावों में कोई व्यवधान न आये । मूल के साथ पढ़ने वालों के लिए यह “अनुवाद उपयोगी होगा ही क्योंकि टीकागत शब्दों को प्रायः यथावत रूप में उपस्थित करते हुए उनके आशय का स्पष्टीकरण किया है । भिन्न-भिन्न भावों को विशद रूप में समझ पाने में सुविधा रहे अतः एक ही अवतरण को अलग-अलग Paragraphs में भी देने का प्रयत्न किया है । दुरुह और जटिलतम भावों को सरलतम शब्दों में प्रकट करने की चेष्टा की गई है । आशा है यह अनुवाद आगमों के जिज्ञासु अभ्यासार्थियों तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं विद्यापीठों में प्राकृत एवं जैन शास्त्रों के अध्ययनार्थियों, शोधार्थियों और अनुसंघित्सुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, वे इसका साभिरूचि अध्ययन करेंगे।
____ यहाँ यह ज्ञातव्य है कि टीकाकार ने प्रत्येक अध्ययन के प्रारम्भ में अपनी ओर से कुछ प्रस्ताविक लिखा है, आगम की मूलगाथाओं की दृष्टि से क्रमानुसार अध्ययन की दृष्टि से उसे लिया जाना अपेक्षित नहीं समझा गया, क्योंकि वह टीकाकार के अपने विचार है अध्येताओं के लिए अध्ययन अधिक भारवाही न बने, सरल एवं सुगम रहे, इस दृष्टि से उनका अनुवाद नहीं दिया गया है।
मूल, गाथाएं, छाया, संस्कृत टीका एवं टीका के हिन्दी अनुवाद की प्रेसवृति तैयार करने में तत्वानुरागी श्रावकवर्य श्री अमोलकचन्द जी हींगड़ तथा श्री महेन्द्र सिंह जी खाबिया ने बड़ा श्रम किया, इस श्रुतोपासना मूल कार्य में उन्होंने जो हार्दिक सहयोग किया है वे साधुवादाह है।
कार्तिक शुक्ला १५ वि. सं. २०५५
स्थायी पता : केवल्य धाम सरदार शहर जिला चुरु (राजस्थान)
डॉ. छगनलाल शास्त्री
(एम. ए.त्रय, पी.एच.डी.) , काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि, निम्बार्कभूषण
. पूर्व प्रोफेसर, रिचर्स इंस्टिट्यूट ऑफ प्राकृत जैनोलॉजी, अहिंसा, वैशाली बिहार विश्वविद्यालय, डिपार्टमेन्ट ऑफ जैनोलॉजी, मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास