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धवल - गीतों से बन गूंज उठा। गांगलि ऋषिने अपनी तथा वरकी योग्यतानुसार सर्व विधि स्वयं कराई, इससे भी बहुत शोभा हुई ।
विवाह पश्चात् राजाने ऋषिसे कहा कि "मैं किसीको भी राज्यव्यवस्था न सम्हला कर अचानक इधर आगया हूं" ऋषिने कहा कि 'तो शीघ्र जानेकी तैयारी करो' । हमारे समान दिगम्बरकी तैयारी में क्या विलम्ब ? परन्तु हे राजन् ! तेरा दिव्य वेष और अपना वल्कल-वेष देख २ कर यह कमलमाला महान पुरुषों को भी दुःख पैदा कर देती है; साथ ही इसने आज तक आश्रम में सदा वृक्षोंको जल पिलाया है व जन्मसे अभी तक केवल तापसी-स्त्रियोंके रीति-रिवाज देखती आई है । इसीसे जन्मसे भोली है, परन्तु तुझमें पूर्ण अनुरागिणी है। राजन् ! इस मेरी कन्याको सोतों से ( अन्य रानियोंसे) किसी प्रकारका तिर स्कार न होना चाहिये । "
राजा ने कहा- "अन्य नियोंसे इसकी परा भूति ( विशेपऋद्धि ) होगी, पराभूति ( तिरस्कार ) कदापि न होगा । इससे आपके वचनों में लेश मात्र भी कमी न होगी- "
इतना कह कर चतुर राजाने तापसीजनों को प्रसन्न करके तापसी -स्त्रियों आदिको संतोष देनेके उद्देशसे पुनः कहा कि - अपने स्थान पर पहुंचने पर इसके संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करूंगा. अभी यहां तो वस्त्रादिक भी कहां से मिल सकते हैं ?" -