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सत्कार किया । वास्तव में ऐसे तपस्वी तो जो काम हाथमें ले लेते हैं उसमें यशस्वी ही होते हैं। तत्पश्चात् बुद्धिशाली गांगलि - ऋषिने राजासे कहा कि - "हे राजन् ! आपके आगमनसे हम कृतार्थ हुए, इसलिये हमारे कुलको अलंकारके समान, जगतके नेत्रोंको वश करनेके लिये साक्षात् कामणरूप, हमारे जीवनके प्रत्यक्ष प्राणरूप, कल्पवृक्षके फूलों की मालाके समान कमल-माला नामक मेरी कन्या आप ही के योग्य है, आप उसका पाणिग्रहण करके हमको अंगीकार करो."
"मन भाती बात ही वैद्य ने बताई " ऐसा ही अवसर हुआ । मनमें तो राजाको स्वीकार ही थी, तो भी ऋषिने जब बहुत ही आग्रह किया तब राजाने यह बात स्वीकार की, सत्पुरुषों की यही रीति है ।
पश्चात् ऋषिने अपनी नवयौवन- सम्पन्न कन्याका राजाके साथ विवाह किया। शुभ कार्यमें विलम्ब कैसा ? जिसके शरीर . पर बल्ल वस्त्र सिवाय कोई अलंकार नहीं था तो भी राजा मृगध्वज ऋषिकन्या कमलमालाको देख कर बहुत प्रसन्न हुआ । क्यों न हो? राजहंसकी प्रीति कमलमाला ( कमलोंकी पंक्ति ) पर होना ही चाहिये ।
अंत ऋषि कर मोचन के समय जमाई ( राजा ) को पुत्र संतति दायक एक मंत्र दिया। ऋषियों के पास और कौनसी बस्तु देने लायक है ? उस समय आनन्द पायी हुई तापसिनियों के