________________
REFE
स्तन (दुग्ध) पान आदि की क्रियायें देखी जाती हैं, वे पूर्वभव के संस्कार ही तो हैं। अन्यथा पैदा होते ही | पशुओं के बच्चे को क्या पता कि माँ का दूध कहाँ है ? और कैसे स्तनपान किया जाता है। मरने के बाद भी भूत-प्रेत के रूप में भटकती आत्माओं का अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि भविष्य में भी ये जीवात्मा अपने पुण्य-पाप के अनुसार ही चौरासी लाख योनियों में भटकता है और मोक्षमार्ग मिल जाये तो मुक्त भी हो जाता है, यही जीव का परलोक कहलाता है। इसके सिवाय जातिस्मरण से, जीवन-मरणरूप आवागमन से और आप्तप्रणीत आगम से भी जीव का पृथक् अस्तित्व सिद्ध होता है। | यदि आपके कहे अनुसार पृथ्वी आदि भूतचतुष्टय के संयोग से जीव उत्पन्न होता है तो भोजन पकाने के लिए अग्नि पर रखी हुई वटलोई में भी जीव की उत्पत्ति हो जानी चाहिए; क्योंकि वहाँ भी तो अग्निपानी-वायु और पृथ्वीरूप भूतचतुष्टय का संयोग होता है। इसप्रकार भूतवादियों के मत में अनेक दूषण हैं; इसलिए उनका मत पूर्णरूपेण असत् है।"
इसके बाद स्वयंबुद्ध मंत्री ने विज्ञानवादी से कहा - "आप इस जगत को विज्ञानाद्वैत मात्र मानते हो; परन्तु विज्ञान से विज्ञान की सिद्धि नहीं हो सकती; क्योंकि इसमें तो साध्य-साधन - दोनों एक ही हैं - ऐसी हालत में तत्त्व का निश्चय कैसे हो सकता है ? एक बात यह भी है कि लोक में बाह्य पदार्थों की सिद्धि वाक्यों के प्रयोग से ही होती है। अब प्रश्न है कि वे वाक्य विज्ञान से भिन्न हैं या अभिन्न ? यदि वे वाक्य विज्ञान से भिन्न हैं तो विज्ञान का अद्वैतपना नहीं रहा और यदि अभिन्न है तो - 'यह लोक विज्ञानमय है' इसकी सिद्धि किसके द्वारा की ?
एक बात यह भी है कि जब तुम निरंश-निर्विभाग विज्ञान को ही मानते हो तो ग्राह्य-ग्राहक भेद व्यवहार किसप्रकार सिद्ध होगा ? तात्पर्य यह है कि "विज्ञान पदार्थों को जानता है" इस वाक्य में विज्ञान ग्राहक है और पदार्थ ग्राह्य हैं। जब तुम ग्राह्य पदार्थों की सत्ता ही स्वीकृत नहीं करते हो तो ज्ञान ग्राहक किसप्रकार | सिद्ध होगा ? यदि ग्राह्य को स्वीकार करते तो विज्ञान का अद्वैतपना नहीं ठहरता ।