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जाते । इसप्रकार अनेक नगरों तथा ग्रामों में विहार करते-करते सात माह और नौ दिन का समय निराहार अवस्था में बीत गया ।
एक दिन विहार करते हुए मुनिराज ऋषभदेव कुरुक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर में पहुँचे। उस समय हस्तिनापुर | के राजा सोमप्रभ और उनके लघु भ्राता श्रेयांस कुमार थे। ये राजा श्रेयांस अपने पूर्व के सातवें भव में आहार दान के समय जो कि ऋषभदेव के व्रजजंघ की पर्याय में उनकी श्रीमती नाम की रानी थे । वही यह राजा श्रेयांसकुमार हैं। मुनिराज जिस दिन हस्तिनापुर पधारने वाले थे, उसी दिन की पूर्व रात्रि के पिछले प्रहर में श्रेयांसकुमार ने पूर्वसंस्कार के बल से सुमेरु पर्वत, कल्पवृक्ष, सिंह, बैल, सूर्य-चन्द्र, समुद्र आदि सात स्वप्न | देखे । जिनका फल 'अपने आंगन में आहार के निमित्त मुनिराज का पदार्पण था । '
प्रभात होने पर दोनों भाई स्वप्नों की चर्चा कर ही रहे थे कि योगिराज मुनि ऋषभदेव ने हस्तिनापुर में प्रवेश किया। मुनिराज के आगमन से आनन्दित होकर चारों ओर से नगर निवासियों के समूह मुनिराज के दर्शन हेतु उमड़ पड़े। भोले-भाले लोग कह रहे थे कि मुनिराज फिर प्रजाजनों की रक्षा करने पधारे हैं। ऋषभदेव सबके पितामह हैं ।
अब तक ऐसा सुना था, आज प्रत्यक्ष देखा है । जब नगर में उनके प्रति भक्ति भावना से लोग नानाप्रकार | से अपने-अपने भक्तिभाव भरे वचन बोल रहे थे, तब भी मुनिराज तो अपने संवेग और वैराग्य की सिद्धि | के लिए वैराग्य भावनाओं का चिन्तन करते-करते अपनी आत्मा की धुन में ही चले जा रहे थे। लोग कह | रहे थे - " अहो ऐसी राग-द्वेष रहित समता वृत्ति को धारण करना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । "
'मुनिराज ऋषभदेव राजमहल की ओर पधार रहे हैं' यह जानकर सिद्धार्थनामक द्वारपाल ने तुरन्त राजा सोमप्रभ तथा श्रेयांस को सूचना दी कि मुनिराज ऋषभदेव राजमहल की ओर पदार्पण कर रहे हैं ।
यह सुनते ही दोनों भाई, मंत्री आदि सहित खड़े हुए और अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक राजमहल के प्रांगण में आकर उन्होंने दूर से ही मुनिराज के चरणों में भक्तिभाव पूर्वक नमस्कार किया। मुनिराज के पधारते ही सम्मान
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