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| विषय में नहीं आता; पर गुणों का अभेद सम्मिलित रहता है; उसीप्रकार काल (पर्याय) की अनित्यता तो दृष्टि के विषय में नहीं रहती; किन्तु काल की नित्यताकाल के अभेद (पर्यायों के अनुस्यूति से रचित धाराप्रवाह) को दृष्टि के विषय में सम्मिलित किया है।
मात्र काल के भेद का नाम पर्याय नहीं है; किन्तु काल का भेद, प्रदेश का भेद, गुण का भेद और || द्रव्य का भेद - इन चारों का नाम पर्याय है। ___ काल का अभेद काल की नित्यता (निरन्तरता) पर्यायों का अनुस्यूति से रचित प्रवाह पर्याय में शामिल नहीं है, मात्र - चारों के भेद ही पर्याय में शामिल हैं। अतः काल की नित्यता अर्थात् पर्यायों का अनुस्यूति से रचित धाराप्रवाहपना द्रव्यदृष्टि के विषय में शामिल है, इसे नहीं भूलना चाहिए।
प्रश्न - जब 'ज्ञानमात्र आत्मा का लक्षण है तो आत्मा का दूसरा नाम 'ज्ञानी ही क्यों नहीं रखा ?
उत्तर - 'ज्ञान' नाम देने से आत्मा के अनन्त गुणों उपेक्षा होती है और मात्र ज्ञानगुण आत्मा के समग्र स्वरूप को बताने में समर्थ नहीं है। ज्ञानमात्र कहने से अनन्तगुणमय सम्पूर्ण आत्मा समझ में नहीं आता है। जबकि - ज्ञानमात्र इस शब्द में, हैं अनन्त गुण व्याप्त । ज्ञायक भी कहते उसे, प्रगट पुकारा आप्त ।।
यदि ज्ञायक को मात्र जाननेवाले के अर्थ में ही ग्रहण किया जाये तो वह एक ज्ञानगुणवाला हो जायेगा और ज्ञानगुणवाला कहने से भेद खड़ा हो जायेगा तथा भेद का नाम तो पर्याय है, वह त्रिकाली ध्रुव में शामिल नहीं है।
प्रत्येक वस्तु स्व-चतुष्टय से युक्त होती है, यह एक नियम है। वस्तु उसी का नाम है जो स्व-चतुष्टय से युक्त है। आचार्य समन्तभद्र ने कहा भी है -
"सदैव सर्वं को नेच्छेत, स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विपर्यासान्न चेन्न व्यवतिष्ठते ।। ऐसा कौन है जो वस्तु को स्व-चतुष्टय की अपेक्षा अस्तिरूप में स्वीकार नहीं करेगा? और ऐसा कौन || २२
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