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सकता है कि पर्याय अनित्य है? तथा वे पर्यायें नित्य नई-नई आ रही हैं, प्रतिसमय बदल भी रही हैं; अतः उन्हें नित्य भी कैसे कह सकते हैं? | उत्तर - जिसप्रकार गंगा नदी का हमेशा बहते रहना उसकी 'नित्यता' है और उसका प्रवाहीरूप अनित्यता
है। उसीप्रकार द्रव्य, वह परिणमनशील भी है और अपरिणामी भी है। जो परिणमन अनादिकाल से | अनंतकाल तक एक समय भी नहीं रुकता है; वह परिणमन नित्य ही है अर्थात् उसका प्रवाहीपना भी नित्य ही है। अनित्य का अर्थ तो ऐसा है जो कभी हो' और 'कभी न भी हो' तथा नित्य का अर्थ है जो सदा हो।'
अन्य नदियाँ तो कभी-कभी बहना बन्द कर देती हैं। लेकिन गंगानदी कभी भी नहीं रुकती। जब बरसात होती है, तब गंगा बरसात के पानी से बहती है और गर्मियों में बर्फ पिघलती है, तो उस समय बर्फ के पानी से गंगा बहती है, इसप्रकार गंगा नदी का प्रवाह एक समय भी अवरुद्ध नहीं होता है। यही त्रिकाल प्रवाहीपना उसकी नित्यता है और प्रवाह में प्रतिक्षण नवीन जल का बहना उसकी अनित्यता है।
इसीप्रकार द्रव्य का प्रवाह भी अनादिकाल से लेकर अनंतकाल तक एकसमय भी अवरुद्ध नहीं होता है; इसीलिए तो ऐसा कहते हैं कि भगवान! आपकी नित्यता तो नित्य है ही, आपकी अनित्यता भी नित्य है।
आत्मा में जो अनित्य नाम का धर्म है, वह अनित्य नहीं है, किन्तु नित्य है। नित्य धर्म के समान अनित्य धर्म भी नित्य ही है। जैसे आत्मा में ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुण नित्य हैं वैसे ही अनित्य नाम का धर्म भी नित्य है।
इसप्रकार अनित्य नाम का धर्म भी नित्य होने से दृष्टि के विषय में शामिल है। अनित्यधर्म और नित्यधर्म की अखण्डता दृष्टि के विषय में शामिल है। यदि उस अनित्य धर्म में नित्यत्व नहीं घटता तो वह दृष्टि के विषय में शामिल नहीं हो सकता था; किन्तु अनित्य धर्म में नित्यत्व घटित होता है; इसलिए 'अनित्य' धर्म भी दृष्टि के विषय में शामिल हैं।
प्रश्न - दृष्टि के विषय में गुणभेद का निषेध करके भी गुणों के अभेद को रखकर भाव को अखण्डित || कर लिया, द्रव्यभेद का निषेध करके भी द्रव्य को रखकर अथवा सामान्य को रखकर द्रव्य को अखण्डित || २४