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उपसंहार
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प्रस्तुत शलाका पुरुष पूर्वार्द्ध में तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के वर्तमान तीर्थंकर भव के पंचकल्याणकों का विस्तृत विवरण एवं उनके पूर्वभवों का चित्र-विचित्र चरित्र-चित्रण जो हुआ है, वह पाठकों के लिए पुण्यार्जन का हेतु तो है ही, वैराग्यप्रेरक भी है। साथ ही भगवान भरत और भगवान बाहुबली के बहु आयामी व्यक्तित्व का जो चित्रण हुआ है, उससे भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उस संपूर्ण विवरण का सारांश यह है कि जगत में जितने भी जीव हैं, उनकी होनहार | के अनुरूप उतने ही प्रकार की पुण्य पाप की चित्र-विचित्र परिणतियाँ हैं । यद्यपि भगवान ऋषभदेव और भरत - बाहुबली - तीनों ही तद्भव मुक्तिगामी थे, क्षायिक समकिती थे, फिर भी कषायचक्र ने उन्हें भी राग-विराग के झूले में ऐसा झुलाया कि जन साधारण जन उनकी परिणति देख आश्चर्यचकित रह गये।
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जहाँ भगवान ऋषभदेव चारित्रमोह के रागवश ८३ लाख पूर्व की उम्र तक नीलांजना का नृत्य देखते रहे, वहीं भरतजी | ने क्रोधावेश में बाहुबली पर चक्र चला दिया । यद्यपि इस बात में दो मत हैं, पर घटना घटी ही थी । यह जुदी बात हैं कि वे स्वयं हारे थे या उन्हें हराया गया था। इसके पक्ष-विपक्ष में जो तर्क दिए गए, अब पाठक उनसे परिचित ही हो गये हैं।
तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव जैसे महान पदों के धारक और निकट भव्य मोक्षगामी पुरुषों से भी यदि भूतकाल में भूलें हुई हैं तो उन्हें भी अपनी-अपनी होनहार और कर्मोदय के अनुसार संसार में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों को भोगना ही पड़ता है। उन परिस्थितियों को टालने में इन्द्र एवं जिनेन्द्र भी समर्थ नहीं है। जैसा कि हमने तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के तथा उनके सहगामी जीवों के पूर्वभवों के वर्णन में पढ़ा है।
सिंह, नेवला, बन्दर और शूकर जैसे पशु पर्याय को प्राप्त जीव भी अपने शुभाशुभ भावों का फल भोगते हुए कैसीकैसी योनियों में जन्मते-मरते रहे तथा राजा श्रेयांस, सेनापति जयकुमार - सुलोचना आदि के पूर्व भवों की जानकारी से | यह विश्वास हो जाता है कि यद्यपि हम अपने पूर्वभवों में अबतक ऐसे ही संसार सागर में गोते लगाते रहे हैं, परन्तु यदि हमारा वर्तमान संभल सका तो हमारा भविष्य भी उज्ज्वल बन सकता है।
· ॐ नमः ।
सर्ग