Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 262
________________ २६३) श ला का पु रु ष विषयवाली पर्याय नहीं है; क्योंकि पर्यायार्थिकनय के विषयवाली पर्याय में तो प्रदेशों का व्यतिरेक भी शामिल है, गुणों का व्यतिरेक भी शामिल है। जबकि इस पर्याय में मात्र काल का व्यतिरेक ही आता है। समझने में परेशानी यह है कि दोनों का नाम ही पर्याय है, दोनों को ही पर्याय कहा जाता है । अभी जो यह कहा था कि 'यदि विस्तारक्रम का कारण प्रदेशों का व्यतिरेक है और प्रवाहक्रम का कारण परिणामों का व्यतिरेक है तो प्रदेशों और परिणामों का अन्वय अनुस्यूति से रचित विस्तार और प्रवाह; क्षेत्र और काल की समग्रता (अखण्डता) का कारण होना चाहिए।' तो यहाँ पर 'प्रदेशों का अन्वय' का तात्पर्य अनुस्यूति से रचित विस्तार है और 'परिणामों का अन्वय' का तात्पर्य अनुस्यूति से रचित प्रवाह है। 1 जिसप्रकार विस्तारक्रम का कारण प्रदेशों का व्यतिरेक है तो प्रदेशों का अन्वय क्षेत्र की समग्रता ( अखण्डता) का कारण होना चाहिए; उसीप्रकार प्रवाहक्रम का कारण परिणामों का व्यतिरेक है तो परिणामों का अन्वय काल की समग्रता (अखण्डता) का कारण होना चाहिए । दस नयों में जो एक अन्वयद्रव्यार्थिकनय है, उस अन्वयद्रव्यार्थिकनय का विषय यही अन्वय है । अन्वय द्रव्यार्थिकनय का विषय है और व्यतिरेक पर्यायार्थिकनय का विषय है तथा उस द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत अन्वय में गुणों का अन्वय, प्रदेशों का अन्वय और पर्यायों का अन्वय - सभी का अन्वय | शामिल है, व्यतिरेक किसी का भी शामिल नहीं है । दृष्टि के विषय में काल का अन्वय शामिल है, काल का व्यतिरेक शामिल नहीं है; क्षेत्र का अन्वय शामिल है, क्षेत्र का व्यतिरेक शामिल नहीं है । यहाँ व्यतिरेक का अर्थ पृथकता है, भिन्न-भिन्नपना है। इस विषय को समझने के लिए चित्त की एकाग्रता की अत्यंत आवश्यकता है, इसके लिए चित्त का अन्वय आवश्यक है, यदि चित्त व्यतिरेकों में उलझा हुआ है तो विषय समझ में नहीं आएगा । इसप्रकार यह अत्यंत स्पष्ट है कि प्रवाह की निरन्तरता को भी नित्यता कहते हैं; क्योंकि नित्यता और प 5 o d of do p F य भी दृ ष्टि के वि ष य में शा मि है ? सर्ग

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