Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 271
________________ २७२ अब अ ला का पु जब ऐसा कहा जाता है कि - “दृष्टि के विषय में पर्याय सम्मिलित नहीं है, तब 'पर्याय' का अर्थ मात्र | द्रव्य-गुण- पर्याय वाली 'पर्याय' ही नहीं होता है, उस पर्याय में गुणभेद, प्रदेशभेद, द्रव्यभेद एवं कालभेद भी सम्मिलित है।" द्रव्य को यदि अनन्त गुणों के रूप में अलग-अलग करके देखा जायेगा तो द्रव्य नहीं दिखेगा; बल्कि अनन्तगुण दिखेंगे। जब अनन्तगुणों को अभेद करके देखेंगे, तब ही द्रव्य दिखाई देगा। जबतक ज्ञान-दर्शन| चारित्र भेदरूप से दिखाई देंगे, तबतक आत्मा नहीं दिखेगा। अनन्त गुणों के अभेद का नाम द्रव्य है। यद्यपि द्रव्य में जो अनन्त गुण हैं, उन सभी में लक्षण भेद हैं । जैसे- ज्ञान गुण का काम जानना, दर्शन गुण का काम देखना, श्रद्धा गुण का काम अपनापन स्थापित करना । इन सभी के लक्षण अलग-अलग होने से ये जुदे-जुदे हैं; किन्तु ये कभी भी बिखर कर अलग-अलग नहीं होते। ये गुण अनादि से अनन्तकाल तक एक दूसरे से अनुस्यूत हैं ऐसे अनन्त गुणों के अभेद को द्रव्य कहते हैं । - भेद पर लक्ष्य रखने से अभेदवस्तु ख्याल में नहीं आती है, इसलिए भेद को गौण करना होगा ।' यदि भेद को गौण नहीं किया तो भेद का अभाव मान लिया जायेगा । horo द्र व्य का जहाँ कहीं भी ऐसा कहा जाता है कि- 'भेद तो है ही नहीं' वह भी गौण करने के अर्थ में ही कहा जाता है; अभाव के अर्थ में नहीं; परन्तु भाषा निषेध जैसी लगती है; क्योंकि ऐसे निषेध की भाषा का प्रयोग | किए बिना गौण कर ही नहीं पाते । अतः निषेध या अभाव जैसी भाषा बोलना वक्ता की मजबूरी है । जैसे - किसी चीज को तीर का निशाना लगाना होता है तो दूसरी आँख को बन्द करके देखते हैं, यदि वि दूसरी आँख बन्द नहीं करेंगे तो लक्ष्य स्पष्ट दिखाई नहीं देगा। इसप्रकार दूसरी आँख से नहीं देखने का नाम | उस आँख को गौण कर देना है, जिसतरह लक्ष्यभेद के लिए दूसरी आँख सर्वथा फोड़ना नहीं; बल्कि बन्द करना है; उसीतरह दूसरा पक्ष गौण किया जाता है, उसका सर्वथा निषेध नहीं किया जाता। भले ही भाषा निषेध की ही क्यों न हो। दृ ष य सर्ग

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