Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 267
________________ REFE FFEp तत्त्व अजीव में शामिल नहीं हैं। इसका कारण यह है कि द्रव्यों में जो पुद्गल आदि द्रव्य हैं, वे अजीव ही| हैं, इसलिए उनको अजीव में शामिल किया जा सकता है, किन्तु आस्रव मात्र अजीव ही नहीं है, उसमें पुद्गलरूप द्रव्यास्रव होने के साथ भावास्रव जीव का परिणाम भी है। यदि आस्रवादिक के जीवास्रव भेद करके जीव-अजीव में शामिल करते हैं तो वह जीव दृष्टि का विषयभूत जीव नहीं रहेगा; जिसके आश्रय || से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है; क्योंकि जीवास्रवादि को जीवतत्त्व में शामिल करने से राग और मिथ्यात्व | भी शामिल होता है, पर्याय भी शामिल होती है; इसलिए दृष्टि के विषयभूत जीव में से इन सभी को अलग रखने के लिए आस्रवादिक जीव-अजीव से भिन्न तत्त्व कहे गये । इसप्रकार दृष्टि का विषयभूत जीव-अजीव और आस्रवादिक से भी भिन्न है। यदि जीव को मात्र अजीव से भिन्न करते हैं तो अजीव में द्रव्यास्रवादिक ही शामिल है, भावास्रवादिक नहीं; अतएव दृष्टि के विषयभूत द्रव्य में से भावानुवादिक को भी निकालने के लिए उसे आस्रवादिक से भी भिन्न कहा । दृष्टि का विषयभूत द्रव्य तो भावमोक्ष अर्थात् मोक्षपर्याय से भी भिन्न है; इसलिए मोक्ष को भी जीव में शामिल नहीं किया। जो अजीव और आस्रवादिक - इन सभी से भिन्न है - ऐसे जीव को दृष्टि का विषय बनाने पर सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी। यह तत्त्वचर्चा अध्यात्म का अंग है और द्रव्यचर्चा सिद्धान्त का अंग है। सभी पर्यायों को तत्त्वव्यवस्था में अलग स्थान मिला है। तत्त्वव्यवस्था में जब पर्यायों को अर्थात् आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष को अलग-अलग तत्त्व कहकर जीव और अजीव से अलग कर दिया है तो फिर ये जीव और अजीव में क्यों शामिल होंगे? द्रव्यव्यवस्था में तो अन्य जीव अजीव में ही शामिल होंगे; क्योंकि वहाँ इनकी कोई अलग व्यवस्था नहीं है; लेकिन तत्त्वव्यवस्था में जीव को अजीव में शामिल होने की समस्या ही नहीं है; क्योंकि वही अजीव पृथक् तत्त्व बना दिया है। आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - इनमें जीव की सभी पर्यायें शामिल हैं। निगोद से लेकर मोक्ष तक जीव की समस्त विकारी और अविकारी पर्यायें इन आस्रवादिक तत्त्वों में || २३ FEEohenE

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