Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 268
________________ BREFE | शामिल हैं। इन आस्रवादिक के अलावा जीव की ऐसी कोई भी पर्याय नहीं है, जिसे हम जीव में शामिल श | करना चाहे । कहने का तात्पर्य यह है कि समस्त विकारी और अविकारी पर्यायें आस्रवादिक पाँच तत्त्वों में ही शामिल हैं, जीव में शामिल नहीं हैं। समस्त विकारी और अविकारी पर्यायों से रहित जीवतत्त्व ही द्रव्यदृष्टि का विषय है। यही इस कथन का सार है। | उक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह बात उभरकर सामने आती है कि दृष्टि के विषयभूत भगवान आत्मा में पर्यायार्थिकनय की विषयभूत सभी पर्यायों में से कोई भी पर्याय शामिल नहीं है। ध्यान रहे, पर्यायार्थिकनय | के विषय में गुणभेद, प्रदेशभेद और कालभेद - ये सभी तो आते हैं; परन्तु पर्यायों का अनुस्यूति से रचित प्रवाह इस पर्यायार्थिकनय में नहीं आता है। यह द्रव्यार्थिकनय का विषय है। पर्यायों से पार भगवान आत्मा के आश्रय से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप निर्मल पर्यायों की उत्पत्ति होती है; मोक्षमार्ग का प्रारंभ होता है, मोक्ष होता है इसी पर्यायों से पार भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित होने का नाम सम्यग्दर्शन, इसे निज जानने का नाम सम्यग्ज्ञान और इसमें ही जमने-रमने का नाम सम्यक्चारित्र है। ००० FFFep FEEote AE २३

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