Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 261
________________ REFE || कि उन प्रदेशों की संख्या असंख्य है, अनन्त नहीं? वे सभी अखण्ड होने के साथ जुदे-जुदे भी हैं । यद्यपि | | वे जुदे हो नहीं सकते हैं, फिर भी वे ज्ञान में जुदे-जुदे जाने जाते हैं। प्रदेश की तरह गुण भी जुदे नहीं हो सकते हैं; लेकिन वे भी जुदे-जुदे हैं। अलग-अलग नहीं होना - | यह द्रव्य की पहचान है और अलग होना - यह पर्याय की पहचान है। विशेष को, गुण को, प्रदेश को, काल के खण्ड को - इन सभी को पर्याय कहते हैं। क्षेत्र की अखण्डता को असंख्यप्रदेशी कहा जाता है। जब असंख्य प्रदेशी कहा जाता है, तब प्रदेश | विशेषण बन जाते हैं अर्थात् असंख्य प्रदेशी एक अखण्ड वस्तु का बोध कराता है तथा जब असंख्य प्रदेश कहा जाता है, तब वह भेद का बोध कराता है। ___ यदि अनुभव में अलग-अलग प्रदेश ख्याल में आते हैं तो आत्मा का अनुभव नहीं होगा, अपितु विकल्प की ही उत्पत्ति होगी; अनन्तगुण अलग-अलग ख्याल में आए तो भी आत्मा का अनुभव नहीं होगा, अपितु विकल्प की उत्पत्ति होगी; यदि अलग-अलग पर्यायें भी अनुभव में आती हैं, तब भी आत्मा का अनुभव नहीं होगा, अपितु विकल्प की ही उत्पत्ति होगी। ____ जब क्षेत्रसंबंधी भेद का विकल्प, कालसंबंधी भेद का विकल्प, द्रव्यसंबंधी भेद का विकल्प और भावसंबंधी भेद का विकल्प - ये सभी विकल्प नहीं होते हैं, तब वह अनुभूति का काल है। उस समय जो द्रव्यदृष्टि का विषय बनता है; वही द्रव्यार्थिकनय का विषय है। यहाँ व्यतिरेक का अर्थ होता है विपरीत या पृथकता, भिन्न-भिन्नपना । जैसे अखण्डता का विपरीत खण्ड है अर्थात् अखण्डता का व्यतिरेक खण्ड है; उसीप्रकार वस्तु की समग्रता के व्यतिरेक को प्रदेश और परिणामों की समग्रता के व्यतिरेक को पर्याय कहा जाता है। परिणामों की समग्रता के व्यतिरेक को पर्याय कहते हैं, लेकिन मात्र यह पर्याय पर्यायार्थिकनय के || २३ FFep REFE Eate AE

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