Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 255
________________ । शास्त्रों में गुणों को भी पर्याय नाम से कहा गया है। जैसे कि - पर्यायें दो प्रकार की होती हैं - १. सहभावी २. क्रमभावी । सहभावी पर्याय गुण को कहते हैं और क्रमभावीपर्याय पर्याय को कहते हैं। अतएव हम पर्याय के नाम पर सभी पर्यायों को भी दृष्टि के विषय में से निकाल नहीं सकते। यदि हम पर्याय का लक्षण नहीं समझेंगे तो किस पर्याय को हम दृष्टि के विषय में सम्मिलित करें और किसे सम्मिलित नहीं करें - यह निर्णय नहीं कर सकेंगे। अतः हमें गुण व पर्यायों का सम्यक्स्वरूप समझना एवं उनका प्रयोग करने का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। ___व्यवहारनय की उपयोगिता - जैनदर्शन में किस नय को कहाँ मुख्य और कहाँ गौण करना - यह विवेक वक्ता को तो होना ही चाहिए। अन्यथा वह जिनवाणी का वक्ता नहीं हो सकता। आगम में भी यही कहा है कि वक्ता के अभिप्राय को नय कहते हैं। किस नय का कब/कहाँ/कैसे प्रयोग करना - यह वक्ता के अभिप्राय पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ - ‘रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए' - यह कथन व्यवहारनय का है कि निश्चयनय का? यदि इस व्यवहारनय के कथन को कभी भी मुख्य नहीं करेंगे तो इसका अर्थ यह हो जायेगा कि सभी को रात में खाने देना चाहिए। यदि हम ऐसा कहेंगे कि - "द्वि इन्द्रियादि जीवों की हिंसा नहीं करना चाहिए" तो व्यवहारनय मुख्य हो जायेगा इस भय से व्यवहारनय का उपदेश ही न दें तो चरणानुयोग का क्या होगा? और हीन आचरणवाले को तत्त्वज्ञान भी कैसे होगा ? ००० २२

Loading...

Page Navigation
1 ... 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278