Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 256
________________ २५७ श ला का पु रु ष (२३) क्या पर्याय दृष्टि के विषय में शामिल है ? श्रोता के मन में शंका हुई यदि ऐसा है तो फिर पर्याय दृष्टि के विषय में किस रूप में शामिल है ? हाँ, पर्याय दृष्टि के विषय में शामिल तो है; परन्तु विषय बनने के रूप में पर्याय भी दृष्टि के विषय में शामिल है। जैसे कि करन्ट वाहक बिजली के तार में करन्ट तबतक नहीं आता है, जबतक वह उस पावर प्लग को स्पर्श नहीं करेगा, जिसमें बिजली बहती है; उसीप्रकार जबतक पर्याय ज्ञायकस्वभावी निज जीवद्रव्य | को स्पर्श नहीं करेगी, तबतक पर्याय में केवलज्ञान नहीं होगा। स्वभाव में तो सर्वज्ञत्वशक्ति पड़ी हुई है, लेकिन जबतक पर्याय उस स्वभाव का स्पर्श नहीं करेगी, तो उसमें केवलज्ञान कहाँ से आएगा? इस अपेक्षा से पर्याय दृष्टि के विषय में शामिल है अर्थात् दृष्टि के विषय में मिली हुई है। पर्याय ने स्वभाव का आश्रय लिया, इसलिए भी पर्याय दृष्टि के विषय में शामिल है। जब पर्याय उस द्रव्य को ज्ञान का ज्ञेय बना रही है, श्रद्धा य का श्रद्धेय बना रही है, जब सारे गुण आत्मसम्मुख हो गए हैं, सारी पर्यायें आत्मसम्मुख हो गई हैं तथा आत्मा का अतीन्द्रिय आनन्द का झरना भी पर्यायों में फूट पड़ा है और उस आनन्द में कहीं अन्तराल भी नहीं अर्थात् आनन्द की अखण्डधारा पर्याय में बह रही है। जब पर्याय ने उस द्रव्य के प्रति अपने आपको इतना समर्पित कर दिया है तो फिर पर्याय को द्रव्य में शामिल होने के लिए और क्या करना है ? में 5od of do p 5 पर्याय द्रव्य में शामिल होने के लिए द्रव्य के साथ एकाकार तक हो गई तथा उसने अपना नाम तक बदल लिया अर्थात् पर्याय ने अपना स्वर भी ऐसा कर लिया कि 'मैं द्रव्य हूँ, मैं आत्मा हूँ, मैं त्रिकालीध्रुव, अनादिअनंत, अखण्ड हूँ।' इसप्रकार विषय बनने की अपेक्षा 'पर्याय' दृष्टि के विषयभूत द्रव्य में शामिल ही है । यदि पर्याय द्रव्यमय नहीं हो तो पर्याय में त्रिकालज्ञ केवलज्ञान ही नहीं होगा। उपयोग की एकाग्रता को भी वि ष शा मि ल है ? सर्ग

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