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चुपचाप अपने घर पहुंचा और अपनी स्त्री से समागम करके चुपचाप अपने मित्रों के साथ जाकर सो गया। समय अनुसार गर्भ बढ़ने लगा, तब समुद्रदत्त के बड़े भाई सागरदत्त ने अपने छोटे भाई की स्त्री सर्वदयिता को बिना उसकी परीक्षा किये दुराचारिणी समझ कर घर से निकाल दिया। भाई सर्वदयित ने भी दुराचारिणी
समझ कर अपने घर में प्रवेश नहीं करने दिया। उसने पास ही के अन्य घर में प्रसवकाल व्यतीत करके एक |पुत्र को जन्म दिया।
जब यह बात सर्वदयित को पता चली तो उसने अपने एक विश्वासपात्र सेवक को बुलाकर कहा कि 'इसे ले जाकर किसी दूसरी जगह छोड़ आ।' सेवक बुद्धिमान था, वह बालक को लेकर श्मशान में आया
और वहाँ से उसे अपने सेठ का विद्याधर मित्र जयधाम और उसकी स्त्री जयभामा मिले थे। श्मशान में विद्या सिद्ध करने आये थे। उस सेवक ने उन दोनों को वह बालक सौंप दिया। उन दोनों ने बालक को औरसपुत्र मानकर उसका नाम जितशत्रु रखकर प्रसन्नता से पालन-पोषण करने लगे। ___सर्वदयिता पुत्र वियोग में स्त्रीवेद की निन्दा करते हुए अच्छे विचार रखते हुए मरकर पुरुष जन्म पाया। तदनन्तर समुद्रदत्त अपने मित्रों के साथ वापस आया और अपनी स्त्री का वृतान्त जानकर अपने बड़े भाई सागरदत्त और साले सर्वदयित की निन्दा करते हुए क्रोध करने लगा, क्योंकि उन दोनों ने ही बिना विचारे उसकी स्त्री को घर से निकाल दिया था।
एक दिन सेठ सर्वदयित के नगर में जितशत्रु आया, उसे देखकर सेठ ने उससे कहा कि 'तेरा रूप समुद्रदत्त के समान किसप्रकार है और तुम यहाँ किसलिए आये हो।' तब जितशत्रु ने अपने आने का कारण बताया। लेकिन उसी समय सेठ को जितशत्रु के हाथ में पहिनी अंगूठी को देखकर निश्चय हो गया कि यह मेरा भानजा ही है। उसने अपनी भूल सुधारने के लिए अपनी पुत्री सर्वश्री का विवाह जितशत्रु के साथ करके बहुत धन देकर उसे सेठ बनाकर स्वयं विरक्त हो गया। उसी समय जितशत्रु को पालनेवाला विद्याधर जयधाम अपनी स्त्री जयभामा के साथ आया, साथ में वैश्रणवणदत्त की स्त्री सागरदत्ता व बहन वैश्रवणदत्ता आदि और भी ॥१७
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