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द्रव्यदृष्टि का स्वरूप भरत केवली से प्रश्न किया - हे स्वामिन! द्रव्यदृष्टि क्या है ? आपकी द्रव्यदृष्टि तो गृहस्थ जीवन में भी विख्यात रही, जिसके बल पर आपने घर में ही वैरागीवत जीवन जीया है, कृपया द्रव्यदृष्टि का स्वरूप विस्तार से बतायें ?
भरतेश जिनेन्द्र की वाणी में आया - "प्रश्न तो तुम्हारा अच्छा है; परन्तु द्रव्यदृष्टि को समझने के पहले इसमें प्रयुक्त 'द्रव्य' और 'दृष्टि' का अर्थ समझना होगा क्योंकि इनके अनेक अर्थ हैं। यहाँ इस प्रसंग में इनके क्या-क्या अर्थ नहीं हैं और क्या अर्थ है, यह जानना जरूरी है, तब 'द्रव्यदृष्टि' समझ में आयेगी।
'द्रव्यदृष्टि' विषय वैसे कोई कठिन नहीं है, परन्तु तत्त्व के अनभ्यास से एवं शास्त्रीय शब्दों से सुपरिचित न होने से कठिन लग सकता है, अतः उपयोग को स्थिर करके सुनना होगा, अन्यथा समझ में नहीं आयेगी।
(१) देखो, 'द्रव्य' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, उनमें एक अर्थ धन भी है। जिसके पीछे सारी दुनिया पागल हो रही है; परन्तु ध्यान रहे, यहाँ अध्यात्म जगत में 'द्रव्य' शब्द का अर्थ धन नहीं है।
(२) जैनदर्शन के अनुसार इस लोक में सत् स्वरूप जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये छह वस्तुएँ हैं, जिन्हें द्रव्य कहते हैं - ये छह द्रव्य भी दृष्टि के विषय नहीं हैं अर्थात् इस अध्यात्म के प्रकरण में द्रव्यदृष्टि के प्रसंग में आया 'द्रव्य' शब्द इन छह द्रव्यों का सूचक भी नहीं है।
(३) सत् द्रव्यलक्षणं तथा गुणपर्ययवद् द्रव्यं आदि सूत्रों में प्रतिपादित सत् स्वरूप एवं गुण-पर्याय वाला द्रव्य भी श्रद्धा का श्रद्धेय नहीं है।
(४) प्रत्येक वस्तु स्वचतुष्टमय होती है। उसमें स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल एवं स्वभाव - ऐसे चार अंश || २२