Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 245
________________ (२४६ अब अ ला का भगवान ऋषभदेव के निर्वाण के पश्चात् उनके श्रोतागण भरत जिनेन्द्र की गंधकुटी में एकत्रित हो गये । अर्ककीर्ति एवं आदिराज कुमार हर्षित हुए। शेष मंत्री एवं मित्रों को भी भगवान भरत के दर्शन से अत्यधिक आनन्द हुआ । एक श्रोता ने प्रश्न किया - "प्रभो ! सुना है कि चक्रवर्ती की पट्टरानी चक्रवर्ती के लिए निरन्तराय एवं पु निरन्तर भोग का साधन होने के कारण नियम से नरक जाती है, ऐसा क्यों ? जब चक्रवर्ती को निरन्तर भोगों में रहते हुए गृहत्याग कर मुनिदीक्षा लेने पर स्वर्ग और मुक्ति भी होती है तो रानी के साथ ही ऐसा अन्याय क्यों होता है ?" भरत केवली की दिव्यध्वनि में समाधान आया- “तुमने जो भी इस संबंध में सुना है, वह आप्त पुरुष | से नहीं सुना । वस्तुत: बात यह है कि मात्र दुर्गति को जानेवाले चक्रवर्ती की पट्टरानी ही दुर्गति को जाती है, किन्तु स्वर्ग एवं मोक्ष जानेवाले चक्रवर्ती की स्त्रीरत्न अर्थात् पट्टरानी को तो स्वर्ग की ही प्राप्ति होती है । पुरुषों के परिणाम के अनुसार ही स्त्रियों का परिणाम होता है, इसलिए पुरुष की गति के अनुसार ही वह स्त्रीरत्न भी कुछ कम लगभग उसी मार्ग में रहती है। हाँ, स्त्री पर्याय में मुक्ति संभव नहीं; अत: वे स्वर्ग ही जाती हैं और स्त्री पर्याय को छेदकर देव भी हो सकती हैं। देखो, पुत्र मोक्षगामी, भाई मोक्षगामी, स्वयं के पति भरतेश्वर मुक्तिगामी, फिर भरत की पट्टरानी सुभद्रा की दुर्गति कैसे हो सकती है ? सुभद्रा ने भी आर्यिका की दीक्षा ग्रहण कर स्वर्ग प्राप्त किया था । जब भरत चक्रवर्ती की पालकी को ढोनेवाले सेवक (कहार) भी स्वर्ग जाते हैं। तो पट्टरानी को दुर्गति कैसे हो सकती है ? कभी नहीं हो सकती, वह निर्मल देहवाली है, उसे भी आहार है; पर निहार नहीं, इसीकारण आर्यिका के पद में भी उनके कमण्डल नहीं होता । ००० भ र त जी रा ग्य ए Pop 5 वं श सर्ग

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