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हुआ, चौथे पूर्वभव में राजा वरसेन हुआ, तीसरे पूर्वभव में अच्युतेन्द्र हुआ दूसरे पूर्वभव में वैजयन्त हुआ, || पहले पूर्वभव में अहमिन्द्र हुआ और वहाँ से आकर यहाँ श्रीषेण हुआ।
९. यह गुणसेन गणधर का जीव आठवें पूर्वभव में मायावी सेठ नागदत्त था, सातवें पूर्वभव में बन्दर हुआ, छठवें पूर्वभव में भोगभूमि में आर्य हुआ, पाँचवें पूर्वभव में मनोहर देव हुआ, चौथे पूर्वभव में राजा | चित्रागंद हुआ, तीसरे पूर्वभव में अच्युतेन्द्र हुआ, दूसरे पूर्वभव में जयन्त हुआ, पहले पूर्वभव में अहमिन्द्र हुआ और वहाँ से आकर यहाँ गुणसेन गणधर हुए।
१०. अब जयसेन के भी भव सुनो। अबसे आठवें पूर्वभव में यह लोलुप नाम का लोभी हलवाई था, सातवें पूर्वभव में नेवला हुआ, छठवें पूर्वभव में भोगभूमि में आर्य हुआ, पाँचवें पूर्वभव में मनोहर देव हुआ, चौथे पूर्वभव में राजा प्रशन्तदमन हुआ, तीसरे पूर्वभव में अच्युतेन्द्र हुआ, दूसरे पूर्वभव में अपराजित हुआ, पहले पूर्वभव में अहमिन्द्र हुआ और वहाँ से यहाँ आकर जयसेन हुआ है।
इसप्रकार प्रभु ऋषभदेव जब सातवें पूर्वभव में राजा वज्रजंघ थे, तब उस समय जो उनकी रानी श्रीमती थी, इससमय श्रेयांस हैं, उनका मंत्री मतिवर जो अब तुम (भरत) हो, सेनापति अपराजित इस समय बाहुबली है, पुरोहित आनन्द इस समय मैं (वृषभसेन) हूँ, नगरसेठ धनमित्र इस समय अनन्तविजय है। राजा वज्रजंघ के द्वारा आहार दान की अनुमोदना करनेवाले सिंह का जीव इस समय महासेन है, शूकर का जीव श्रीषेण है, बन्दर का जीव इस समय गणधर गुणसेन है, नेवला (नकुल) का जीव इस समय जयसेन है। ये सभी जीव इसी भव में सिद्धत्व प्राप्त करेंगे।"
इसप्रकार गणधर वृषभसेन से भगवान ऋषभदेव, अपने एवं भगवान के साथ कई भवों के साथ रहे, जीवों के भव सुनकर भरतेश और सभी प्रजाजन समता को प्राप्त हुए और अयोध्या लौट गये। ___संसारी जीवों की यही अनादि परम्परा की रीति है। इसीलिए आचार्यों द्वारा बारह भावनाओं के स्वरूप || ||| का कथन कराकर इस राग को तोड़ने का उपदेश दिया जाता है।
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