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॥ यह जीव जहाँ जाता है, वहीं के परिजनों से रागात्मक संबंध हो जाते हैं। माता-पिता, भाई-बहिनों, श | स्त्री-पुत्र आदि जितने भी रिश्तेदार होते हैं, सभी से स्नेह हो जाता है, फिर उनके वियोग में यह इष्ट
वियोगजनित आर्तध्यान करता है। ध्यान रहे, यद्यपि तीर्थंकर के विरह का ध्यान शुभ आर्तध्यान है, अत:
पुण्यबंध का कारण है, पर है तो बन्धन ही न ? यह आर्तध्यान है तो संसार का ही कारण । अत: वस्तु|| स्वभाव को जानकर यह आर्तध्यान छोड़ो।
इसतरह हम देखते हैं कि मोक्षगामी पुरुष भी अपनी पूर्व पर्यायों में पुण्य-पाप के फलों में नाना योनियों || में आकर जन्में। जब उनकी काललब्धि आई, भली होनहार आने का समय आया तो तदनुसार बुद्धि, व्यवसाय और सहायक भी वैसे ही मिलते गये और एक दिन वह आया कि अपने-अपने समय में सबको निर्वाण की प्राप्ति हो गई।
जो ऐसे महानुभाव एवं शलाका पुरुषों के चरित्रों का पठन-पाठन करेंगे, उनके आदर्श जीवन एवं उपादेय संदेशों को श्रद्धापूर्वक आचरण में लेंगे, वे भी उन्हीं की भाँति अल्पकाल में सद्गति को प्राप्त करेंगे। मुक्ति कन्या उनके कंठ में माला पहना कर उनका वरण करेगी।
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