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समान सादृश्यरूप, सुवर्णवत् देह की कान्ति, बलिष्ठ देह, नई उम्र, आँखों की चमक, मोतियों जैसी दंतपंक्ति, शरीर की कान्ति आदि को देखकर उनके सौन्दर्य से देवेन्द्र एकदम आश्चर्यचकित हुआ। | भरत कुमारों ने समवसरण में तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रत्यक्ष दर्शन किए एवं रत्न के पुष्पों से पुष्पांजलि अर्पण कर साष्टांग नमस्कार किया, स्तुति की, तीन प्रदक्षिणा देकर वहाँ विराजित अन्य केवलियों की भी वंदना की और ग्यारहवें कोठे में बैठ गये।
उन कुमारों में से रविकीर्तिराज ने हाथ जोड़कर प्रभु से प्रार्थना की - "स्वामिन् ! हमें आत्मसिद्धि का उपाय बताइये।
समाधान हेतु मेघगर्जना की ध्वनि के समान जिनेन्द्रदेव की दिव्यध्वनि प्रसारित हुई, जिसतरह एक नदी का पानी विभिन्न वृक्षों में जाकर नानारूप से परिणत हो जाता है, उसीतरह दिव्यध्वनि द्वारा भी सभी श्रोताओं के मन में स्थित विभिन्न शंकाओं का समाधान हो जाता है। वह दिव्यध्वनि नर, सुर, नगेन्द्र एवं पशु-पक्षी आदि सभी की भाषाओं में परिणत होकर सभी के प्रश्नों के उत्तर दे देती है। कोई पास में हो या दूर हो, सबको स्पष्ट सुनाई देती है। आज विज्ञान के युग में दिव्यध्वनि का विभिन्न भाषाओं में रूपान्तरित होना भी असंभव और आश्चर्यजनक नहीं रहा।
रविकीर्तिराज के प्रश्न का उत्तर देते हुए तीर्थंकरदेव ने दिव्यध्वनि द्वारा कहा - "हे भव्य! सुनो! लोक में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये छह द्रव्य हैं। इन्हीं छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं। यह विश्व अनादि-अनन्त एवं स्वाधीन रहकर स्व-संचालित है। इन छह द्रव्यों के आधार पर ही लोक की व्यवस्था है। यह लोक एक होने पर भी इसके तीन विभाग हैं। १. उर्द्धलोक, भूमध्यलोक एवं ३. अधोलोक । नीचे अधोलोक में सात नरक हैं। वहाँ अत्यधिक दुःख हैं। उन भूमियों के ऊपर नाग लोक है। जहाँ असुरकुमार जाति के देवों का निवास है। नाग लोक के ऊपर मध्यलोक तक अधोलोक का विभाग है। ___ मध्यलोक में सुमेरु पर्वत को वलयावृत्ति से प्रदक्षिणा देते हुए अनेक द्वीप-समुद्र हैं। सुमेरु गिरि के ऊपर || १९