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भरतेश कुमारों द्वारा तत्त्वोपदेश एवं वैराग्य की प्रबल भावना तत्त्वरसिक भरतेश कुमारों ने पंचास्तिकाय, छहद्रव्य, साततत्त्व, आठ कर्म एवं नव पदार्थों का वर्णन किया और कहा कि इन सबमें एक आत्मतत्त्व ही उपादेय है। इसप्रकार चेतनतत्त्व का बहुत विस्तार से वर्णन किया। ___ अपने उपदेश में उन्होंने कहा - "जिसप्रकार काष्ठ में दिखनेवाला काठिन्यगुण अग्नि का स्वरूप है, पत्थर पर रगड़ने से वह अग्नि उत्पन्न होती है, उसीप्रकार शरीर में जो चेतन स्वभाव है और ज्ञान है वही आत्मा का चिह्न है। जिसतरह काष्ठ को पत्थर पर रगड़ने से अग्नि उत्पन्न होती है, उसीप्रकार जड़ शरीर से आत्मा रूप अग्नि भिन्न है, वह तत्त्वाभ्यास के संघर्ष से भिन्न पहचानी जाती है।
तात्पर्य यह है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के क्रम से तद्रूप ही आत्मा का अनुभव करे तो चिद्रूप का शीघ्र परिज्ञान होता है । यह आत्मा पानी से गल नहीं सकता, अग्नि में जल नहीं सकता, तलवार से कट नहीं सकता, वायु से उड़ नहीं सकता। आग, पानी, आयुध, शस्त्रादि शरीर को ही मात्र बाधा पहुँचा सकते हैं, आत्मा को नहीं। शरीर नाशशील है और आत्मा अविनश्वर है, शरीर जड़स्वरूप और आत्मा चेतनस्वरूप है। शरीर भूमि के समान है और आत्मा आकाश के समान है।
यह शरीर कारागृह के समान है, आयु बेड़ियों (हथकड़ी) के समान है। बुढ़ापा, जन्म, मरण आदि अनेक बाधायें हैं। अपने स्वरूप को न समझकर यह आत्मा व्यर्थ ही इस शरीर में कष्ट उठा रहा है। यह आत्मा तीन लोक के समस्त पदार्थों को जान-देख सकता है और स्वभाव से करोड़ सूर्य-चन्द्रमा के उज्ज्वल प्रकाश
के समान चेतन प्रकाश से युक्त है। आत्मा की ध्यानाग्नि से कठोर कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं । इसप्रकार || के आध्यात्मिक विवेचन को सुनकर वहाँ उपस्थित सभी कुमार अत्यन्त प्रसन्न हुए।
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