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१२७|| उसमें कोई कुछ भी फेरफार नहीं कर सकेगा, इसतरह पुरुषार्थ कहाँ रहा ? तथा जो पर्यायें उत्पन्न ही नहीं | | हुई, उन्हें केवलज्ञान कैसे जानेगा?
उत्तर - हाँ बात तो ऐसी ही है कि प्रत्येक पदार्थ का किससमय कैसा/क्या परिणमन होगा - यह सब सुनिश्चित ही है और केवली उसे उसी रूप में स्पष्ट जानते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो ऋषभदेव ने यह कैसे बता दिया कि यह मारीचि ही एक कोड़ाकोड़ी वर्ष बाद इसी भरतक्षेत्र का २४वाँ तीर्थंकर महावीर होगा?
भगवान ऋषभदेव के पौत्र मारीचि और महावीर के भवों के बीच में असंख्यभव थे। वे सभी तीर्थंकर | ऋषभदेव के केवलज्ञान में झलक रहे थे। ऐसी एक नहीं अनेक घटनायें पुराणों में हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि भविष्य एकदम सुनिश्चित है। अनन्तकेवली उस सुनिश्चित भविष्य को जानते हैं। जिनवाणी में भी कहा है कि यदि केवलज्ञान भविष्य को न जाने तो उसे दिव्य कौन कहेगा ?
जदि पच्चक्खमजादं पज्जायं पलयिदं च णाणस्स। ण हवदि वा तं णाणं दिव्वं ति हि के परूवेंति ।।३९ यदि अनुत्पन्न विनष्ट पर्यायें प्रत्यक्ष न ज्ञान के।
तो ज्ञान है वह 'दिव्य' ऐसा कौन निश्चय से कहे ।।३९।। अरे भाई! सर्वज्ञता का स्वरूप जानना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है, क्योंकि सर्वज्ञता धर्म का मूल है। सच्चे देव के स्वरूप में सर्वज्ञता शामिल है। जो वीतरागी, सर्वज्ञ व हितोपदेशी हो वही सच्चादेव है - ऐसा आचार्य समन्तभद्र रत्नकरण्डश्रावकाचार में कहते हैं। सर्वज्ञता को समझे बिना सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को समझना भी संभव नहीं है। और सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को भी जो नहीं जानता, उसके तो व्यवहार सम्यग्दर्शन का भी ठिकाना नहीं, उसे धर्म कहाँ से/कैसे होगा?
ऋषभदेव मुनि अवस्था में एक हजार वर्ष तक रहे। दीक्षा लेने के एक हजार वर्ष बाद उन्हें केवलज्ञान हुआ। केवलज्ञान के बाद उनकी दिव्यध्वनि खिरी, जिससे मुक्ति के मार्ग का उद्घाटन हुआ।
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