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भरत - बाहुबली का अन्तर्द्वन्द एवं बाहुबली का वैराग्य
दिग्विजय करते हुए जब चक्रवर्ती भरत की सेना पोदनपुर के समीप पहुँची तो चक्ररत्न एकदम रुक गया । चक्ररत्न का नियम है कि जिन राज्यों के राजा चक्रवर्ती की आधीनता स्वीकार नहीं करते, अपना अस्तित्व अलग रखना चाहते हैं, उन्हें जीतने के लिए वह चक्ररत्न रुक जाता है ।
पोदनपुर के समीप चक्ररत्न रुकने से सबको आश्चर्य हुआ । भरतेश ने मंत्री एवं सेनापति से पूछा - "चक्र क्यों रुक गया है ?” उत्तर मिला - " आपके लघुभ्राताओं के द्वारा आत्मसमर्पण किए बिना चक्ररत्न आगे नहीं बढ़ सकता।" भरतेश ने यह जानकर अपनी समस्त सेना को वहीं पड़ाव डलवा कर रुकवा दिया।
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इस पर दूसरा सैनिक बोला- “बिलकुल ठीक है, हाथी, घोड़ा आदि सेना और हथियारों से दुनिया को डराया और दिग्विजय कर ली । अन्यथा वह साधारण मनुष्य ही तो हैं।"
इसप्रकार सेना में हो रही दो सैनिक विद्याधरों की बातों को भरतजी ने सुन लिया ।
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पड़ाव में उसी रात्रि को जब सभी अपने-अपने विश्रामस्थल में जाकर विश्राम कर रहे थे कि इसी बीच एक घटना घटी - सर्वत्र निस्तब्धता थी, वृक्ष का एक पत्ता भी नहीं हिल रहा था । सुनसान श्मशान जैसा सन्नाटा था। सब सैनिक गहरी नींद में सो रहे थे। तब पड़ाव के किसी कोने में दो विद्याधर सैनिक बातें ली कर रहे थे। पहला सैनिक बोला- “जिसतरह एक-एक बूंद से बड़ा सरोवर बनता है, एक-एक घास के तिनके से रस्सी बन जाती है; इसीप्रकार एक-एक सैनिक की शक्ति से महाराजा भरत चक्रवर्ती बन गये हैं । यदि सेना का बल नहीं होता तो भरतजी भी एक सामान्य मनुष्य ही तो हैं।"
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