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१९९| कुगति के कारण हेतुता के विषय में नहीं सोचते । यद्यपि वे विषय प्रारंभ में मनोहर मालूम होते हैं, किन्तु ||
|| फल काल में कड़वे (दुःखद) जान पड़ते हैं। | अहा! विषयों में आसक्त पुरुष विषयजनित सुखों का निंद्यपना, विषयों की क्षणभंगुरता, उनकी नीरसता
और उनके उपकार के बारे में कभी नहीं सोचते । जिन विषयों के वश में पड़ा हुआ प्राणी अनेक दुःख की परम्परा को प्राप्त होते हैं, उन विष के समान भयंकर विषयों को कौन बुद्धिमान पुरुष प्राप्त करना चाहेगा। अरे! विष के खाने से तो एक बार ही मरण होता है, परन्तु इन विषयों के सेवन से तो अनन्त भवों में दुःख भोगने पड़ते हैं। अत: ये विकल्प तो विष से भी बुरे हैं। कहा भी है -
भोग भुजंग सम जानिके, मत की जौ जी यारी.....
भुजंग डसत इक बार नशत है, ये अनन्त दुःखकारी ।।मत की जौ जी यारी ।।। ऐसे विषयों को कौन समझदार प्राणी प्राप्त करना चाहेगा ? ये विषय प्राणियों में जैसा उद्वेग (भयंकर दुःख) उत्पन्न करते हैं, वैसा उद्वेग (दुःख आकुलता) शस्त्रों के प्रहार, प्रज्वलित अग्नि, वज्र की चोट और विषधर काले नाग भी नहीं कर सकते । भोगों की इच्छावाले लोभी पुरुष धन पाने की इच्छा से बड़े-बड़े समुद्र, प्रचण्ड युद्ध, भयंकर वन, गहरी और तीव्र वेग से बहती नदी और ऊँचे हिंसक प्राणियों वाले पर्वतों पर चढ़कर अपने प्राणों की परवाह किए बिना प्रवृत्ति करते हैं।
विषयों की चाहवाले प्राणी की मूर्खता का कहाँ तक बखान करें, वे प्राणी जलचर हिंसक मगरमच्छ से संयुक्त समुद्रों को पार करते हुए दूर-देशों में जाते हैं। भोगों से लुभाये हुए पुरुष चारों ओर से आपदाओं के घिर कर मृत्यु की परवाह किये बिना युद्ध आदि के लिए तत्पर रहते हैं। मरने की कीमत पर भी भोग और यश पाने का प्रयत्न करते हैं।
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