Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 207
________________ श्रीपाल और वसुपाल ने भी माता के साथ पूज्य पिताश्री गुणपाल केवली की वंदना के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में श्रीपाल और वसुपाल और माता से बिछुड़ कर, मार्ग में भटकते हुए उस वन में पहुंचे, जहाँ | कभी एक वटवृक्ष के नीचे जगत्पाल चकव्रर्ती ने संयम धारण किया था। उसी वृक्ष के नीचे एक दर्शनीय नृत्य हो रहा था, उसे श्रीपाल देखने लगे। नृत्य देखते हुए श्रीपाल ने कहा - "देखो, यह स्त्री का वेष धारण किए पुरुष और पुरुष के वेष में स्त्री नाच रही है। यदि यह स्त्री स्त्री के वेष में ही नृत्य करती तो स्वाभाविक होने से बहुत अच्छा लगता।" श्रीपाल की यह बात सुनकर नर्तकी (नटी) मूर्च्छित हो गई। अनेक उपायों से नर्तकी को सचेत कर उस नर्तकी की सहेली उस भावी चक्रवर्ती श्रीपाल से कहने लगी - "सुरम्य देश के श्रीपुर नगर के राजा श्रीधर हैं, उनकी रानी का नाम श्रीमती है, उनके जयवती नाम की पुत्री है। उसके जन्म के समय ही निमित्त ज्ञानियों ने यह कहा था कि यह चक्रवर्ती की पट्टरानी बनेगी और उस चक्रवर्ती की पहचान यही है कि 'जो नट और नटी के भेद को जानता हो, वही इसका पति चक्रवर्ती होगा। हम लोग यहाँ उसी चक्रवर्ती की प्रतीक्षा में परीक्षा हेतु नृत्य कर रहे थे। पुण्योदय से हम लोगों ने आपको पहचान लिया कि वे चक्रवर्ती आप ही हैं; क्योंकि निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार आपने हमें पहचान लिया है।" ___ परिचय करानेवाली सहेली ने अपने परिचय में कहा कि “मेरा नाम प्रियरति है। यह पुरुष का वेष धारण करनेवाली नर्तकी और कोई नहीं मेरी ही पुत्री मदनवेगा है और स्त्री का वेष धारण करनेवाला वासव नामक नट है।" इसप्रकार उन नट आदि को विदा करके श्रीपाल आगे चले और लगातार सात दिन तक घटनाक्रम अनुसार विचरण करके अनेक विद्यायें प्राप्त की और मार्ग में और भी अनेक स्त्रियों के साथ संबंध होने की अनेक घटनायें हुईं, अन्त में श्रीपाल सुरगिरि पर्वत पर गुणपाल जिनेन्द्रदेव के समवसरण में जा पहुँचे। त्रियोगशुद्धि से श्रीपाल ने बहुत देर तक गुणपाल जिनेन्द्र की स्तुति की। मार्ग में बिछुड़े हुए माता और भाई | वसुपाल को वहाँ देखकर उनका यथायोग्य विनय किया। श्रीपाल ने माताश्री को अपने साथ में आई ||१७ 5 FF NFo_EEP FE

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